बदलाव

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बदलाव

 

मैं पिछले सात साल से पढ़ाई और फिर नौकरी के सिलसिले से बाहर रहती हूं।

छुट्टियों में जब भी घर वापस जाती हूं,

कुछ बदला हुआ जरूर देखती हूं।

यह बदलाव दिमाग और दिल में हजम नहीं होती है।

जितनी बार जाउं,

घर के पीछे वाली पहाड़ कट कर छोटी हो गई होती है,

नदी में उतनी पिल्लर खड़ी हो गई होती है,

खेत के सड़क रोड बन गई होती है,

और रोड दो लेन से छह लेन,

जंगल के पेड़ कट कर कम हो गई होती है,

लोग गांव छोड़कर बड़े शहर चले गए होते हैं,

गांव में ढांक बाजा के जगह बड़े बड़े स्पीकर में आधुनिक गीत बजते है,

लोग बाज़ार से सब्जियां, तेल, साबुन खरीदते हैं,

शादियों में हंडिया के बजाय इंग्लिश दारू मिलती है,

लोग बाईद को छोड़कर हस्पताल जाते हैं,

बच्चे स्कूलों में जाकर दूसरों की भाषा सीखते हैं,

और बस सब कुछ बदलते ही रहता है।

थोड़ी सी सांस लेते हुए,

अब मैं यह सोचती हूं की,

क्या हमे सच में ऐसी बदलाव की जरूरत है?

या हम किसी बाहरी के लालच का शिकार बन गए हैं?

Daisy Kujur

Daisy Kujur is from Rourkela, Odisha and belongs to the Oraon tribe. She has done her post graduation from Tata Institute of Social Sciences. For 3 years, she has been working in the social development sector on promoting Constitutional values and on digital literacy in Jharkhand.

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