भोपाल की बस्तियों में ओझा गोंड आदिवासियों के मूल अधिकारों की लड़ाई

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Madhu Dhurve

फ़ोटो : Madhu Dhurve


जैसा की आप जानते ही हैं, 2020 कोरोना महामारी का जो दौर था हमारी पूरी दुनिया के लिए बहुत ही मुश्किल रहा. जिसमें आज लोग सभी तरह से परेशान हो रहे हैं. जो भारत के गरीब हैं उनके लिए पहले से ही मुश्किलें मानो स्वेटर की तरह बुनकर रख दी हों.

इसी दौर और अभी चलने वाली एक छोटी सी मुश्किल को मैं साझा करना चाहूंगी. भोपाल शहर के बीचों–बीच गौतम नगर नाम की बस्ती है जिसमें आये दिन तमाम तरह की मुश्किलों के साथ लोग अपना जीवन जी रहे हैं. यहां के लोग ओझा गोंड समुदाय के हैं. गोंड समुदाय के लोकगीत कई उप समूहों द्वारा भी संरक्षित किए जाते हैं, जैसे, प्रधान या पठारी, ओझा और डिगा जो पेशेवर कहानीकार और गोंड के बार्ड हैं. 70 से ऊपर ओझा गोंड परिवार यहाँ 20 से 30 सालों से एक प्राइवेट जमीन पर रहकर पन्नी बिनने और नगर निगम में कचरा उठाने का काम करते हैं, और कुछ लोग माँगने का भी काम करते हैं.

आज हम जिस छत के नीचे रहते हैं, जिसे हम अपना घर मानने का दावा करते हैं,  वो घर, वो जमीन, उसका इतिहास, कुछ भी हमारा नही है. हमने तो सिर्फ अवैध ज़मीन पर कब्ज़ा किया है. हमारे बच्चे, बड़े-बूढे इंसान नहीं और हमारी जिंदगी का कोई वजूद नहीं. ऐसा हम बस्ती के लोग नहीं कहते, हमारे चारों ओर रहने वाला समाज और सरकार हमें कदम-कदम पर यह बोलकर हमें अपने बुनियादी अधिकारों से दूर करता है. जब भी हम अपनी बस्ती की मुश्किलों को लेकर पार्षद या कलेक्टर के पास जाकर बोलते हैं या आवेदन देते हैं , तो वे हमें अपने अधिकार देने के बजाये, हमें सुनने के बजाये, अपने मुश्किल भरे कानून का पाठ पढ़ाने लगते हैं, उनको हमारी जिन्दगी और हमारी मुश्किलों से कोई मतलब नहीं है. बस संविधान को एक कठोर पत्थर का रूप देकर हमें दिखाते हैं और हमे पीछे हटने के लिए कहते हैं. ताकि उनकी नौकरी और जिन्दगी सहीसाट चलती रहे. इसी बात को मैं और स्पष्ट तरीके से बताना चाहती हूँ.

हमें अभी लम्बी लड़ाई लड़नी हैं जब तक की हमें अपने हक़ नही मिल जाते. क्योंकि ये जमीन और पत्थर (संविधान) हमारे वजूद होकर भी हमारे नही हैं.

गर्मी के दिनों में हर साल पानी की बहुत मुश्किले होती हैं. पिछले साल की बात है, इस समस्या को लेकर हम बस्ती के लोगों ने पहले भी बहुत बार पार्षद से बात की है और आवेदन दिए हैं लेकिन नतीजा कुछ खास नही निकला. उन्होंने हमारे दो नल के चार मुँह बना दिए लेकिन किसी प्रकार का कोई नल कनेक्शन अभी तक नही किया. बस्ती में लगभग 250-300 लोग हैं , और 75 झुग्गियाँ हैं. बस्ती की आबादी बढ़ती ही जा रही है और पानी की मुश्किलें भी बढ़ती जा रही हैं. इसी मुश्किल को लेकर मै और मेरी माँ वार्ड कार्यालय गई थी वंहा के अधिकारीयों से बात करने, और मै साथ में आवेदन भी बनाकर ले गई थी. जल विभाग के व्यक्ति से बात करी. कई सालों से पानी की समस्या बताते हुए हम थक चुके हैं लेकिन कुछ सही नतीजा नहीं निकला.

आये दिन पानी की समस्या बढती ही जा रही है. नल वाले आदमी से मई 2020 में नये कनेक्शन को लेकर मैने बात की थी. बोल रहा था की नया कनेक्शन नही दूंगा. फिर मैंने कहा आप क्यों नया कनेक्शन नही देंगे? उस आदमी ने मुझे कोई वजह नही बताई तो मैंने कहा – अंकल इतने सालों से आवेदन दे–दे कर हम थक गये हैं. हमारे बस्ती के लोग नगर निगम में काम करते हैं मगर हमारे छोटे–छोटे बच्चे पानी के लिए तड़पते है. अन्नानगर, सरगम बस्ती हमारे आस–पास की सभी जगहों के हर घर में एक–एक नल लगा है. आप लोग बोलते हो सफाई से रहो, कोरोना वायरस से बचने के लिए बार–बार हाथ धोलो मगर बस्ती के लोग जिधर भी नहाने जाते हैं उधर से भगाते हो. वैसे भी हम मर-मर के जी रहे हैं, अगर आपको पैसे चाहिए तो अभी बता दो, हम बस्ती वाले मिलकर आपको पैसे दे देंगे.

उस आदमी ने मेरा फोन जल्दी से काटने से पहले बोला की 3000 लेकर फॉर्म भरने के लिए आ जाओ .

उसी महीने मैं और मेरी माँ फिर से हमारे वार्ड कार्यालय गये. वंहा के कुछ कर्मचारियों ने मुझे पूछा क्यों आये हो और कंहा से आये हो? उनको मैने कहा की झुग्गी बस्ती ढाई लाईन लेकिन उनको समझ में नही आया. उनको मैने हमारे बस्ती के पढ़ोसियों का नाम बताया, जैन, वकील और मनीष ये आदमी जो बंगलो में रहते हैं. तब उन्होंने मुझे कहा की नया कनेक्शन नही मिलेगा तुम प्राइवेट जमीन में रहते हो अवैध तरीके से. तुम्हारे पास जमीन की रजिस्ट्री है? मैंने कहा नहीं है. वे बोले फिर तो नही होगा. मैंने कहा मेरे पास राशन कार्ड हैं, वोटर ID, आधार कार्ड, पेनकार्ड, पासपोर्ट, स्थानीय प्रमाण पत्र, जाती प्रमाण पत्र भी है. जवाब मिला, “तुम क्यों मेरा टाइम ख़राब कर रही हो, तुम क्यों नही समझती हो? तुम खुद का नया घर बनवालो फिर मै नया कनेक्शन दूंगा.” मैंने भी जवाब दिया – क्या मैं घर खरीदते फिरू यंहा खाने के लिए पैसे नही हैं इतने मुश्किल से आपको पैसे देने के लिए तीन हज़ार जोड़े हैं. उन्होंने  कहा मेरी बात पहले सुनो. नया कनेक्शन नहीं मिलेगा चाहो तो टेंकर भेज देता हूँ या नल का टाइम बड़ा देता हूँ. फिर मैंने कहा की टेंकर मत भेजिए नल का टाइम बड़वा दो.

बस्ती के एक बुजुर्ग ने एक बार मुझे बताया था कि, हम भोपाल की बस्तियों में भोपाल गैस लीक के बहुत पहले आये थे. उन्होंने मुझे बताया कि मेरे खुद के नाना अपने गांव से कर्ज लेने के कारण इधर मजदूरी करने आये. एक मराठी ठेकेदार हमें इस बस्ती में लेकर आये.

इतना सब करने के बाद भी अंकल ने नल का टाइम नही बढाया. जब पानी की मुश्किलों को लेकर बस्ती के लोग परेशान थे, तब वे जैन पडोसी के घर आये थे उनका नल ठीक करने. हमारे बस्ती के सामने उन्होंने देखा भी की महिलाये पानी के लिए लड़ रही हैं तब भी उन्होंने एक शब्द भी बस्ती के लोगो से बात नही किया. बस्ती के लोग बात करना चाह रहे थे लेकिन वे जल्दी चले गए. फिर रोज़ की तरह 5-6 घर वालों को पानी नही मिला. महिलाये खाली बर्तन नल में फैक कर चली गई. फिर हमने 4 बार पानी वाले अंकल को फोन किया तब उन्होंने टेंकर भेजा.

वार्ड कार्यालय के कर्मचारियों के मुँह से निकलने वाला एक एक शब्द हमारे पूरे इतिहास और वर्तमान को दर्शाता है. बस्ती के ओझा गोंड समाज के लोग सभी किसी न किसी रूप से विस्थापित होकर यहाँ बसे हैं. बस्ती के एक बुजुर्ग ने एक बार मुझे बताया था कि, हम भोपाल की बस्तियों में भोपाल गैस लीक के बहुत पहले आये थे. काम खोजते हुए इस जगह आकर बसे और उनके पिताजी भी एक गिट्टी खदान में गिट्टी तोड़ने का काम करते थे. उन्होंने मुझे बताया कि मेरे खुद के नाना अपने गांव से कर्ज लेने के कारण इधर मजदूरी करने आये. एक मराठी ठेकेदार हमें इस बस्ती में लेकर आये.

आज ऐसा मानो हमारी जिन्दगी ख़त्म है, खाली हम सब लोग किसी बड़े से गड्डे में पड़े पत्थर हैं जिसका दुनिया में कोई वजूद नही हैं. उनकी बातों से मुझे यही सब महसूस हो रहा था. आखिरकार वो जीत गये और हम हार गये. उन्होंने हमारी कोई मुश्किल नही सुनी. हमें एक तिनका भी महसूस नही किया और रोड में पड़े पत्थर की तरह फैक दिया. मैं और मेरी माँ हम दोनों उदास होकर घर आ गए. मेरे मन में यही सोच आ रही थी की हमारे पास अधिकार वाला कार्ड भी होता तो शायद तब भी हमें एसे ही भगा देते.

लेकिन हमें अभी लम्बी लड़ाई लड़नी हैं जब तक की हमें अपने हक़ नही मिल जाते. क्योंकि ये जमीन और पत्थर (संविधान) हमारे वजूद होकर भी हमारे नही हैं.

Madhu Dhurve

मधु धुर्वे ओझा-गोंड समुदाय से हैं और भोपाल के गौतम नगर बस्ती में रहती हैं. उन्होंने अपनी बीए की पढ़ाई पूरी कर ली है और फिलहाल वह जनसाहस संगठन के साथ हैं. मधु लोगों के अधिकारों के लिए सक्रिय रूप से लड़ रही हैं और साथ ही अपनी बस्ती के संगठन के साथ जनगीत गाती हैं.

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