उसने देखा उपर
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उसने देखा उपर
छत था न छतरी
जमीन पर लचार पिता पड़े थे
इक आस बंधी थी आंखों में
कोई तो आएगा…
सुना था उसने
नहीं होता कोई
तो
सरकार होता है उसका
हर लेगी उसके दुःख दर्द
पता कहाँ था उसे!
सरकारी थोथी पोथी में नहीं होता
आत्मियता और इन्सानियत
दिल्ली की सख्त जमी से जूझती कच्ची उम्र अचानक बड़ी हो गयी
और
बोली अब्बा से
यहाँ कुछ रहा नहीं अब्बू
यहाँ की मिट्टी मर गयी है
मर गया है उसका
इन्सानियत भी
अब्बू की निस्तेज आंखों में हिम्मत से झांकते हुए बोली
चलो अब्बू अब चलते हैं यहाँ से
काफी जगह है वहाँ
वहाँ की मिट्टी जिंदा हैं
जिंदा हैं बुआ ताई ताऊ
कह उसने
पिता को बैठाया साईकल पर
और
चल दिए वहाँ से…
फोटो: दीपा केरकेट्टा, सुखरीखाड़, सरगुजा, छत्तीसगढ़