जे.एन.यू. किस तरह देता है हाशिए के समुदाय के छात्रों को अवसर और विशेष प्रावधान?
28 अक्टूबर 2019 से भारत के अग्रणी उच्च शिक्षण संस्थानों में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जे.एन.यू.) के छात्र संगठन ने विश्वविद्यालय द्वारा प्रस्तावित फी वृद्धि को लेकर विरोध प्रदर्शन शुरू किया था. यह विरोध प्रदर्शन कई महीनों तक चला और इस बीच सरकार ने विश्वविद्यालय कैंपस में सी.आर.पी.एफ. तैनात भी किये और बाद में प्रदर्शन कर रहे छात्र/छात्राओं पर सरकार द्वारा पुलिस बल का भी प्रयोग किया गया जिसमें कई छात्र/छात्राएं घायल हुए. हालाँकि फिलहाल कुछ हद तक फीस ज्यादा न बढ़ाने की बात को प्रशासन ने मान लिया है, हकीकत में क्या होता है वो तो आने वाला वक्त ही बताएगा. उक्त घटनाओं को मद्देनजर रखते हुए यह लेख जे.एन.यू. से जुड़े कुछ मुद्दों और तथ्यों को जानने की कोशिश करती है, जो इस प्रकार हैं:
- जे.एन.यू. में लगभग 50% पढ़ने वाली लड़कियां है (भारत में अभी के समय में कुल जनसँख्या का 48.20% महिलाएं और 51.80% पुरुष हैं).
- जे.एन.यू. में ग्रामीण परिवेश के छात्र/छात्राओं को संविधान प्रदत्त अधिकार से कहीं अधिक मौके दिए जाते हैं.
- जे.एन.यू. के शिक्षक पढाई के साथ-साथ जीवन में और समाज में फैले कुरीतियों/बुराइयों के ख़िलाफ़ भी लड़ने की शिक्षा देते हैं.
सबसे पहले, यह बात रखना जरूरी है कि जे.एन.यू. में लगभग 51% पढ़ने वाली लड़कियां है. साथ ही यहाँ ग्रामीण परिवेश के छात्र/छात्राओं को संविधान प्रदत्त (सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग जैसे – अनुसूचित जनजाति को 7.5 %, अनुसूचित जाति को 15%, और अन्य पिछड़ा वर्ग को 27% का आरक्षण प्राप्त है) अधिकार से अतिरिक्त मौके दिए जाते हैं. आदिवासी, दलित और पिछड़े वर्ग के छात्र काफी संख्या में अनारक्षित सीटों से भी प्रवेश पाते हैं.
ग्रामीण परिवेश के छात्र/छात्राओं और लड़कियों के प्रतिनिधित्व का मुख्य कारण जे.एन.यू. की प्रवेश प्रक्रिया की संरचना है, जिसमें कि प्रमुख “क़्वार्टाइल सिस्टम” है, जो एक प्रभावी संवैधानिक अवसर दिलाता है.
इस सिस्टम के तहत पूरे देश के जिलों को दो भागों में बांटा गया है – क़्वार्टाइल प्रथम एवं क़्वार्टाइल द्वितीय. क़्वार्टाइल प्रथम (अति पिछड़ा इलाका) जैसे – झारखण्ड के सिमडेगा, गुमला, लोहरदगा; ओडिशा के मलकानगिरी, मयूरभंज, कंधमाल, बलांगीर, इत्यादि जिलों को लिया गया है. क़्वार्टाइल द्वितीय (पिछड़ा इलाका) जैसे – झारखण्ड के कोडरमा, हजारीबाग, सराईकेला-खरसावां; ओडिशा के केंद्रपाड़ा, भद्रक, गंजाम इत्यादि जिलों को लिया गया है.
अभी के नियमानुसार, अगर आपने क़्वार्टाइल प्रथम के अंतर्गत आने वाले जिले से 10वीं या 12 वीं पढ़ी है तो जे.एन.यू. में बीए की पढाई करने के लिए आपको में 6 नंबर दिए जाएंगे. और अगर आपने 10वीं, 12 वीं और बीए भी क़्वार्टाइल प्रथम वाले जिले से पढ़ी है तो एम.ए. में प्रवेश के लिए, 10वीं/12 वीं से 3 अंक और बीए से 3 अंक, कुल 6 अंक में मिलेंगे. वहीँ आपने 10वीं/12 वीं क़्वार्टाइल प्रथम वाले जिले से लेकिन बीए बिना क़्वार्टाइल वाले से किया है तो आपको प्रवेश के लिए सिर्फ 3 अंक ही मिलेंगे. दूसरी ओर अगर आपने क़्वार्टाइल द्वितीय के अंतर्गत आने वाले जिले से 10वीं/12वीं की है तो बीए की पढाई के लिए 4 अंक मिलेंगे.
अगर आप डिस्टेंस लर्निंग से भी पढ़ रहे हैं लेकिन क़्वार्टाइल प्रथम या द्वितीय के जिले में रहते हैं तब भी आपको इसका फायदा मिलेगा, (लेकिन आप अगर क़्वार्टाइल प्रथम या द्वितीय वाले जिले में पैदा हुए हैं, लेकिन रेगुलर पढाई बिना क़्वार्टाइल वाले जिले से कर रहे हैं तो आपको इसका फायदा नहीं मिलेगा). ये भी ध्यान देने वाली बात है की क़्वार्टाइल सिस्टम को 2011 के जनगणना के अनुसार निम्नलिखित बिंदुओं के आधार पर पुनः वर्गीकृत किया गया है – महिला साक्षरता प्रतिशत, कृषि कर्मी लोगों का प्रतिशत, ग्रामीण जनसँख्या का प्रतिशत, और बिना टॉयलेट वाले गांवों का प्रतिशत.
इसी तरह अगर आप कश्मीरी माइग्रेंट (कश्मीर प्रवासी) हैं तो आपको 5 नंबर मिलेगा. खास बात ये है कि अगर पढाई करने वाली – लड़की है या ट्रांसजेंडर है और क़्वार्टाइल प्रथम जिले से 10 वीं/12 वीं पढ़ी है तो बीए में पढ़ने के लिए कुल 12 अंक का लाभ मिलेगा (मतलब 6 अंक लिंग समानता के उदेश्य के लिए, और 6 अंक क़्वार्टाइल प्रथम में पढाई करने के लिए). इसी प्रकार, अगर पढ़ने वाली लड़की कश्मीर प्रवासी है तो उसे कुल 10 नंबर मिलेंगे. उपरोक्त प्रावधानों के साथ जो संविधान प्रदत्त अधिकार हैं वो तो मिलेंगे ही.
यही कारण है कि जे.एन.यू. में पढ़ने वालों में लड़कियां लगभग 51% हैं. साथ ही इसी प्रकार ग्रामीण परिवेश के कई छात्र अपने जीवन की उड़ान जे.एन.यू. से भरते हैं. विश्वविद्यालय की 2014 की रिपोर्ट के मुताबिक यहाँ करीब 50% छात्र अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और विकलांग वर्ग के थे.
ग्रामीण परिवेश में मुख्यतः दलित, आदिवासी और पिछड़े रहते हैं और क़्वार्टाइल सिस्टम का इनको काफी ज्यादा फायदा होता है. इस बिंदु पर सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि पिछले कुछ वर्षों में आरक्षित वर्ग के छात्र काफी तादाद में अनारक्षित सीटों से प्रवेश परीक्षा पास करने लगे थे और विश्वविद्यालय, संविधान प्रदत्त अधिकारों के अनुकूल आरक्षित वर्ग के छात्रों को अनारक्षित वर्ग में प्रवेश देता रहा था. हालाँकि कुछ स्कूल और केंद्र (खासकर विज्ञान से जुड़े स्कूल और केंद्र) अभी भी हैं जो अपनी संकुचित मानसिकता का परिचय देते हुए भेदभाव करते रहे हैं, लेकिन कमोबेश संवैधानिक अधिकार देने की कोशिश करने वालों में जे.एन.यू. भारत के अग्रणी संस्थानों में निश्चित रूप से आगे है.
हालाँकि, पिछले कुछ सालों से सीट कटौती ज्यादा होने और मौके कम किये जाने की वजह से प्रशासन पर काफी सवाल खड़े किये जा चुके हैं. 2018-19 में एमफिल/पीएचडी की कुल घोषित 723 सीटों में सिर्फ 625 भरे गए. वहीँ सामाजिक न्याय के दृष्टिकोण से भी प्रशासन का रवैया भेदभावपूर्ण रहा, जैसे — घोषित 47 अनुसूचित जनजाति सीटों में से सिर्फ 31 तथा कुल 107 घोषित अनुसूचित जाति की सीटों में सिर्फ 72, और घोषित 198 अन्य पिछड़े वर्ग की सीटों में सिर्फ 125 भरे गए.
विश्वविद्यालय के नियमानुसार यदि आरक्षण अपनी पूर्ण क्षमता में लागू किया जाता है, तो यह हाशिए के लोगों के प्रतिनिधित्व को बढ़ा सकता है. 2019 में 3 हजार 8 सौ 83 सीटों के लिए प्रवेश परीक्षा देने वालों की संख्या लगभग 1 लाख 16 हजार थीं, और वर्तमान में कुल छात्रों की संख्या लगभग 8 हजार 7 सौ के आसपास है.
उपलब्ध संवैधानिक अधिकारों के साथ साथ, विश्विद्यालय में उपस्थित विविध वैचारिक वातावरण, सामाजिक मुद्दों से जुड़ने और समझने के अवसर भी प्रदान करते हैं. जहाँ हर वक्त कुछ-न-कुछ सीखने या जानने से सम्बंधित कार्यक्रम, सेमिनार और नाटक चल रहे होते हैं. शिक्षक सिर्फ रूम में नहीं बल्कि जरुरत पड़ने पर मैदानों, पार्कों में भी क्लास लेते दिखते हैं. यहाँ का वैचारिक वातावरण जातिवाद और लिंग असमानता के खिलाफ लड़ने की बात करता है, मानवतावाद की बात करता है, सिर्फ भारत नहीं बल्कि वसुधैव कुटुंबकम (आत्मवत सर्वभूतेषु) की बात करता है, पूरी पृथ्वी एक राष्ट्र की बात करता है.
जे.एन.यू. की कम फीस होने की वजह से सभी वर्गों, राज्यों और जिलों से छात्र/छात्राएं यहाँ दाखिला लेते हैं. एक लाख से कम आय वालों को मेरिट-कम-मीन्स (एमसीएम) के रूप में छात्रवृति मिलती है और काफी छात्र/छात्राओं का यही सहारा होता है. और कई छात्रों का एक का जीवन स्रोत है. यहाँ ऐसी कई लड़कियाँ हैं जो जे.एन.यू.आकर ट्यूशन पढ़ाकर अपनी पढाई पूरी करती हैं. हाशिये पर जीने वाले वर्गों को समुचित प्रतिनिधित्व प्रदान करने की कोशिश के साथ ही विश्वविद्यालय उन्हें अपने अधिकारों को जानना और सवाल करना सीखाता है. शायद इन्हीं वर्गों के सवालों और अधिकार देने से बचने के लिए सरकार कभी फीस का हथकंडा अपनाती है तो कभी अनावश्यक सख़्त नियम लाती है.
शिक्षा में बराबरी के अधिकार के लिए – मुफ्त में शिक्षा मिलना और इसे मौलिक अधिकार बनाना बहुत ही जरुरी है. सरकार का यही उत्तरदायित्व उसे जनता के प्रति जवाबदेह बनाती है और जनता का प्रजातंत्र पर भरोसा कायम रहता है.