पेड़, पृथ्वी और हवा की तरह

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Jyoti Lakra

टुकड़ो में तुम काटे गए
पेड़ होने से पहले,
तुम्हें काटा गया

जुड़े रहे जमीन से
पर
जड़ होने से पहले,
तुम्हें हटाया गया

शैलाबें उमड़ी चलती
तुम्हारे पीछे
रास्ता बनने से पहले,
तुम रोके दिए गए

रश्मो-रिवाज थोप
उसे
दुहराते हुए
एक स्वर में पुरोहितों ने
दुहाराया
“हे मनुष्य तू मिट्टी है
मिट्टी में मिल जा”

हमारे रश्मो-रिवाजों में,
हमारे पूरखे पूर्वज
सदैव संग होते हैं
हमारे
हर काम हर उत्सव
शुरू
करने से पहले
हम
दो बूंद तपावन
भेंट करते हुए
आह्वान करते है
उन्हें
और
उसी कड़ी में खुद को
जोड़ते हुए
करते हैं फिर से वही
जो करते रहे
पूरखे पूर्वज हमारे

कैसे अलगा सकते वे
जमीन से
जड़ होने से
और
बनने से पेड़
तुम्हें

हमारे पूर्वज पूरखे की तरह
अब
तुम भी
पेड़, पृथ्वी और हवा में
घुले हो
हर वक्त हर जगह


 

Jyoti Lakra

ज्योति लकड़ा झारखंड के गढ़वा जिले के कुटकु डैम से विस्थापित कुरुख़ आदिवासी परिवार से हैं. उनका परिवार पहले खेती पर निर्भर था, लेकिन अभी उड़ीसा, छत्तीसगढ़ और दिल्ली में बतौर मजदूर के रूप में कार्यरत हैं. वे सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक अर्थव्यवस्था की त्रासदियों से जूझ रहे आदिवासी दुनिया की पीड़ा को अपनी कहानियों और कविताओं के माध्यम से उकेरती हैं. इन्हें फर्स्ट “रमणिका पुरस्कार सम्मान” 2019 से सम्मानित किया गया था. इनकी रचनाएँ विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं.

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