नियमगिरि: अस्पताल की जगह तेजी से खुल रही पुलिस छावनियां, हो रही अवैध गिरफ्तारी

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ओड़िशा के कालाहांडी और रायगढ़ा जिले के बीच स्थित नियमगिरि में डोंगरिया कोंध आदिवासी इन दिनों तरह-तरह की मौसमी बीमारियों से जूझ रहे हैं। वहां कभी कोई डॉक्टर नहीं पहुंचता। कोई अस्पताल नहीं है। नियमगिरि सुरक्षा समिति से जुड़े उपेन्द्र भाई कहते हैं ” हम लोग समिति की ओर से  समय-समय पर  चिकित्सा शिविर लगाते हैं। लेकिन पुलिस हमें गांव तक दवाएं पहुंचाने से रोक देती है। पुलिस का कहना है कि दवाएं माओवादियों को पहुंचाए जाते हैं। इसका मतलब यही है कि पुलिस नियमगिरि के हर ग्रामीण को माओवादी समझती है और  उन तक जीवन की मूलभूत जरूरतों को भी पहुंचने से रोकती है। यह दुखद है।” 

उपेन्द्र भाई आगे कहते हैं कि नियमगिरि के लोग भी अस्पताल और अपनी मातृभाषा व दूसरी भाषाओं में पढ़ायी के लिए स्कूल चाहते हैं। लेकिन इन सुविधाओं के बदले सड़क निर्माण की शर्त रख दी जाती है। नियमगिरि के लोग पांच फुट से ज्यादा चौड़ी सड़क के पक्ष में नहीं हैं। उनका मानना है कि चौड़ी सड़कें यहां के लोगों की जरूरत नहीं है। डर है कि गावों में पुलिस का आना-जाना बढ़ेगा और निर्दोष ग्रामीणों को माओवादियों के नाम पर परेशान करने की उनकी गतिविधि बढ़ेगी। साथ ही खनन के लिए दबाव बढ़ेगा (ग्राम सभाओं की असहमति के बावजूद, कुख्यात माइनिंग कंपनी वेदांता, कई वर्षों से नियमगिरि में स्थित बॉक्साइट पर अपनी नज़र गड़ाए रखा है)। बाहर के लोगों के साथ यहां धीरे-धीरे बड़े बाज़ार का प्रवेश होगा जिससे नियमगिरि के आदिवासियों की संस्कृति और जीवनशैली बुरी तरह प्रभावित होगी। पर, ओड़िशा में कई जगहों पर सरकार की सहमति से कंपनी सड़कें बना रही है। कंपनी चौड़ी सड़कें ही बनाती है। चौड़ी सड़क के प्रस्ताव पर सहमत नहीं होने के कारण नियमगिरि को जीवन की मूलभूत सुविधाओं से भी जानबूझ कर वंचित रखा जा रहा है। गांव के लोग पूछते हैं कि क्या सुविधाएं चौड़ी सड़कों पर चलकर ही नियमगिरि पहुंच सकती हैं? 

नियमगिरि के पहाड़ों पर खेती। (फोटो: जसिंता केरकेट्टा)

नियमगिरि में कुल 112 पदर या गांव हैं। इन गांवों में कहीं भी स्कूल, अस्पताल जैसी कोई सुविधा नहीं है। नियमगिरि के पहाड़ों ने मौसम को संतुलित रखा है। यहां अच्छी बारिश, गर्मी और ठंड पड़ती है। यहां के लोग पूरी तरह खेती पर निर्भर हैं। पटांगपदर गांव के युवा कृष्णो मांझी का कहना है नियमगिरि में लोग काफी मात्रा में हल्दी उगाते हैं। संतरे भी बहुत होते हैं। यहां एक कोल्ड स्टोरेज हो जाता तो लोग अपनी चीजें सुरक्षित रख सकेंगे और उन्हें बेच सकेंगे। लेकिन सरकार इन जरूरी मांगों पर कभी ध्यान नहीं देती है। 

पूछताछ के नाम पर सालभर रखते हैं जेल में
लोग बताते हैं कि माओवादियों के ठिकाने पूछने के बहाने पुलिस लोगों को उठा लेे जाती है और सालों साल जेल में रखती है। 2016 में नियमगिरि के गरटा गांव से माओवादियों के ठिकानों के बारे पूछताछ करने लेे जाए गए दशरू को करीब डेढ़ साल बाद छोड़ा गया। उसी तरह 6 जुलाई 2019 को मयावली गांव से दो लोग सिकडू सीकोका और गिरासन फर्लांग को घर से ही रात के 12 बजे पुलिस उठाकर लेे गई। हाल ही में 23 जुलाई को नियमगिरि के दो अलग-अलग गांवों के पांच लोगों को पांच छह साल पुराने मामले को लेकर नोटिस भेजा गया। ये लोग भवानीपटना कोर्ट अपनी हाजिरी देने गए थे। वहीं से पुलिस ने उनको पकड़ लिया। कुनाकाडू गांव से दो व्यक्ति सुना मांझी, रांगे मांझी को और पालवेरी गांव से जीलू मांझी, पात्रो मांझी, सलपु मांझी को भी गिरफ्तार किया गया था जिन्हे एक महिने के बाद 29 अगस्त को रिहा किया गया। 

पात्रो की मां बोंगारी कहती हैं “हमें नहीं पता मेरे इकलौते बेटे को पुलिस क्यों उठा ले गई? यदि नियमगिरि आंदोलन की वजह से पुलिस आज भी लोगों को उठा रही है, तो आंदोलन में क्या यही पांच लोग थे? सैकड़ों लोग थे। ऐसे चुन-चुन कर उठाया जा रहा है। कुछ लोग तो साल— साल भर तक घर नहीं लौटते। पूछताछ के नाम पर क्या लोगों को सालों साल जेल में रखा जाता है?” जीलु मांझी की पत्नी कोचाड़ी कहती हैं “आठ बच्चे हैं मेरे। अभी जिलू कहां है, कैसे हैं, कुछ पता नहीं चल रहा। डोंगर में काम करने के लिए अकेली पड़ती हूं। खेती-बारी, सब काम ठप्प हो गया है। पूछताछ के लिए इस तरह महीनों जेल में रखना, हमारी समझ में कभी नहीं आता।”

लखपदर गांव के ड्रेंचू कहते हैं कि नियमगिरि की तराई में धीरे-धीरे स्थाई पुलिस कैंप खोलने की तैयारी चल रही है। फरवरी से ही तहसीलदारों का त्रिलोचनपुर आना जाना हो रहा था। लोगों को संदेह था यह दौरा पुलिस कैंप के लिए जगह देखने के लिए ही हो रहा है। नियमगिरि के लोगों ने 15 फरवरी को पुलिस कैंप के विरोध में कालाहांडी डीसी और ओड़िशा के राज्यपाल को एक पत्र सौंपा, लेकिन फरवरी के अंतिम सप्ताह में त्रिलोचनपुर में अस्थाई कैंप लगा दिया गया। वहीं बेलगुड़ा में स्थाई कैंप के लिए भवन का निर्माण चल रहा है। 


फोटो : नियमगिरि के पहाड़ (जसिंता केरकेट्टा)

Jacinta Kerketta

Jacinta is a freelancer journalist, poet from Ranchi, Jharkhand. She belongs to Kurukh/Oraon community. Her poem collection titled "Angor" was published in 2016 by Adivaani Publications. Her second poetry collection is "Land of the Roots" published by Bhartiya Jnanpith, New Delhi in 2018. रांची, झारखंड से, जसिंता एक स्वतंत्र पत्रकार और कवि हैं। वह कुरुख / उरांव समुदाय से हैं। "अंगोर" शीर्षक से इनकी कविता संग्रह 2016 में आदिवाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित हुई थी। 2018 में प्रकाशित इनकी दूसरी कविता संग्रह "जड़ों की जमीन" है जो भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित की गई है।

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