लिख तो मैं भी सकता हुं साहब, पर जमानत कराएगा कौन?

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लिख तो मैं भी सकता हुं साहब पर जमानत कराएगा कौन?

असमानता, शोषण की राह लिखुं
या दमनकारियों की वाह लिखुं,
कल्लुरी की जीत लिखुं
या खामोश आदिवासीयों को मृत लिखुं।
नक्सलियों के कुकर्म लिखुं
या महिलाओं का दुष्कर्म लिखुं

लिख तो मैं भी दुं साहब
पर लगी आग बुझाएगा कौन
घर से विस्थापित बैगाओं का हाल लिखुं
या बेदखल करने वाले शोषकों की  चाल लिखुं
टाटा, अडानी के लिए शासकों की प्रीत लिखुं
या वीरान जंगलों में गुंजने वाली रेलाओं के गीत लिखुं
फर्जी मुठभेडों में मरे लोगों कि दुर्दशा लिखुं
या जेल में बंद निरापराधियों की दशा लिखुं

लिख तो मैं भी सकता हुं साहब
पर जख्मों पर मरहम लगायेगा कौन
बेघर अपनों कि दास्तां लिखुं
या ठेकेदारों की उपलब्धि
कैंपों में रहने वाले आदिवासीयों को लिखुं
या घुसपैठियों के काले कारनामें लिखुं
“लिख तो मैं भी सकता हुं साहब
पर जमानत कराएगा कौन?

Jitendra Sonu Maravi

जितेन्द्र सोनू मरावी "रूद्र" छत्तीसगढ़ - सरगुजा के सुरजपुर के रहने वाले हैं। बहुत ही कम उम्र में समाजसेवा मे लग कर आदिवासीयों के हक अधिकार के लिए आंदोलन खडा कर लडते आये हैं। वर्तमान में सोनू बीए सेकेण्ड ईयर के विद्यार्थी हैं। समाज सेवा के साथ साथ लेखनी में भी हाथ आजमाते रहते हैं।

One thought on “लिख तो मैं भी सकता हुं साहब, पर जमानत कराएगा कौन?

  • December 21, 2018 at 11:37 am
    Permalink

    Those who write truth
    must be ready to pay the price
    for writing truth.

    Reply

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