गोंडवाना के वैभवशाली चाँदागढ़ क़िले का स्वर्णिम इतिहास
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फोटो : जटपुरा द्वार (बाहर से).
चंद्रपुर किला (पूर्व में चाँदागढ़) चंद्रपुर शहर में सबसे पुराना क्षेत्र है। यह 13 वीं शताब्दी में गोंड राजा खांडक्या बल्लाल शाह द्वारा बनाया गया था। इसके आठ प्रवेश द्वार हैं, (घड़ी के काँटे के चलने के क्रम में) जटपुरा गेट, बागड खिड्की, अंकलेश्वर गेट, हनुमान खिड्की, पठानपुरा गेट, विठोबा खिड्की, बिनबा गेट और चोर खिड्की। यह किला ईराई और झारपत नदियों के संगम पर स्थित है।
गोंड राजा सुरजा उर्फ सेर साह की मौत पर, उनके बेटे खांडक्या बल्लाल साह सिंहासन पर आसीन हुए। इस राजा के चेहरे पर सफ़ेद दाग़ थे। राजा बहुत इलाज करवाए लेकिन ठीक नहीं हो सके। उनकी देखभाल उनकी बुद्धिमान और सुंदर पत्नी करती थी। जब कोई उपाय खांडक्या को ठीक नहीं कर सका तो उन्होंने सिरपुर, (सम्प्रति में छत्तीसगढ़ में)छोड़कर वर्धा के उत्तरी तट पर आ गए और जहां उन्होंने बल्लारपुर नामक एक किले का निर्माण किया।
एक दिन, जैसा कि पौराणिक कथाओं के रूप में जाता है, राजा बल्लारपुर के उत्तर-पश्चिम की तरफ़ शिकार कर रहे थे और उन्हें तेज़ की प्यास लगी। वे पानी की तलाश में झारपत नदी के सूखे किनारे तक पहुंचे। उसने देखा कि एक झिर्री से थोड़ा थोड़ा पानी की निकल रहा था । राजा ने उस पानी से मुँह, हाथ और पैर धोए, और उसी पानी को पी कर अपनी प्यास भी बुझाई ।

उस रात वह अपने जीवन में पहली बार बहुत सुकून से सो पाए और अगले दिन काफ़ी देर तक सोते रहे। जब रानी ने उन्हें जगाया तो उन्हें यह देखकर बहुत खुशी हुई कि उसके पति के शरीर और चेहरे से दाग़ धब्बे सब गायब हो गए थे। पूछताछ पर राजा ने झारपत नदी के पानी से अद्भुत इलाज का वर्णन रानी को सुनाया।रानी ने खांडक्या से उस स्थान पर ले जाने का अनुरोध किया जहां उन्होंने अपनी प्यास बुझाई थी। दोनों झारपत नदी के किनारे गए और उस जगह को देखा। घास और रेत को साफ़ करने पर ठोस चट्टान में एक गाय के पांच पैरों के निशान देखे गए थे, प्रत्येक पानी से भरा था। मौके पर पानी का स्रोत विद्यमान था।

जहाँ पर बाद में ब्राह्मण सलाहकारों ने रानी से मंदिर बनवाने का आग्रह किया और आज वह स्थान अचलेश्वर महदेव मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है।यह अत्राम वंश के मक़बरे के मुख्य द्वार के पास ही है ।आज मुख्य गेट के आसपास ढेर सारे मूर्तियाँ बाहर से लाकर कर छोटे छोटे मंदिर बनाकर अतिक्रमण किया गया है।
एक श्रुति के अनुसार एक सुबह राजा खांडक्या बल्लाल साह शिकार खेलते खेलते अपने घोड़े पर सवार थे तभी उन्होंने देखा कि एक ख़रगोश झाड़ी से बाहर निकल कर उनके शिकारी कुत्ते का पीछा करने लगा। इस असामान्य घटनाक्रम से राजा आश्चर्यचकित हो गए। उन्होंने देखा कि कुत्ता एक विशेष बड़े से गोले में में भाग रहा था, जबकि खरगोश ने उसे पकड़ने के लिए आड़ा तिरछा मार्ग अपना रहा था ।एक बिंदु पर आकर यह खेल ख़त्म हुआ इस तरह जहाँ से खेल शुरू हुआ था कुत्ते ने ख़रगोश को उसी बिंदु पर मार डाला।

राजा ने जब ख़रगोश को उठाया तब पाया कि खरगोश के माथे पर एक सफेद जगह थी। वे इस बात पर विचार करने लगे कि इसका क्या अर्थ हो सकता है। फिर वे वापस घर चले गए और अपनी पत्नी को पूरा वृत्तांत सुनाया । उनकी बुद्धिमान और दूरदर्शी रानी ने सलाह दी कि यह घटना एक अच्छा शगुन है और इसे ध्यान में रखते हुए उस जगह पर एक मजबूत क़िला बनाया जाना चाहिए। और एक पूरा शहर परकोटे के भीतर बसाया जाना चाहिए। जहाँ जहाँ से ख़रगोश भागा था वहाँ पर खरगोश के ट्रैक के साथ एक खाई खोदी गई, जो कि राजा के घोड़े के पैरों के निशान से आसानी से समझ में आया था। पूरी तरह से चिह्नित करके दीवार , द्वार और बुर्ज की योजना बनाई गई और नए शहर की नींव रखी गयी।

उन्होंने आगे सलाह दी कि जहां पर खरगोश को कुत्ते ने मारा था वहाँ विशेष बुर्जों का निर्माण किया जाना चाहिए। रानी ने एक भविष्यवाणी भी की कि एक खिड़की भविष्य में शहर के लिए खतरनाक साबित होगा। राजा ने रानी के सुझावों को लागू करने में कोई समय नहीं खोया और इस प्रकार चंद्रपुर शहर की इमारत की निर्माण की शुरूआत हुई। गोंडवाना के लोग ख़रगोश के माथे के सफेद स्थान (चंद्र) में अपनी उत्पत्ति देखते है। खांडक्य बल्लाल साह ने इस प्रकार चंद्रपुर शहर की स्थापना की।
इस क़िले की बाहरी परिधि से इसके बृहद रूप का अंदाजा लगाया जा सकता है । यह क़िला भारत के इतिहास में सबसे बड़े आकार का क़िला है जो आज की सरकार और समाज दोनों द्वारा उपेक्षित है और इतिहास की ये स्वर्णिम धरोहर दिन ब दिन अपना स्वरूप खोती जा रही है ।