बस्तर की जीवंत सांस्कृतिक दस्तावेज : येरमिह्तना एक महान गोटुल (पुस्तक समीक्षा)
येरमिह्तना – यह जन्मोपरांत माँ के हांथो नवजात के प्रथम स्नान की प्रक्रिया है | प्रकृति केन्द्रीत आदिवासी जीवनदर्शन के अनुसार माँ के हांथो इस प्रथम स्नान से शिशु में पूरे जीवन के लिए ऊर्जा का संचय होता है | ज्ञात हो कि बस्तर के आदिवासी बहुल ग्रामों में पारंपरिक शैक्षिक केंद्र गोटुल कहलाते हैं, इसलिए वह गोटुल जो इस उपन्यास के केंद्र में है, उसका नाम येरमिह्तना रखा गया है | क्योकि इस गोटुल से मिलाने वाली सांस्कृतिक – सामाजिक व सामुदायिकता केन्द्रीत शिक्षा से पूरे जीवन के लिए ऊर्जा मिलाती है | उपन्यास की शुरुआत इसी गोटुल के विशाल चित्रण के साथ शुरू होती है, जिसमे आज सैकड़ो सदस्य इसकी नयी सदस्यता ग्रहण करने की प्रक्रिया से गुजर रहे है |
वह गोटुल, जिसके नियम अलिखीत परन्तु दृढ हैं | जो अपने पुरखों से किये उस वादा के प्रति प्रतिबद्ध है कि हर कीमत पर अपने इस सांस्कृतिक विरासत को अगले पीढी तक सुरक्षित हस्तांतरित करेगा | अब तक वह इस प्रतिस्पर्धामय दुनिया के संपर्क में नहीं था, तब यह वादा पूरा करना उसके लिये आसान था, पर अब जब आधुनिकता और तथाकथित विकास उसके सामने आकर खडा हो जाता है और जब वह पहली बार धर्म, सत्ता और व्यापार के संपर्क में आता है, तब उसे उस वादे को पूरा करने के लिए इनसे संघर्ष करना पड़ता है | उस संघर्ष की व्याख्या है – येरमिह्तना, जो गोटुल के सजीव पात्रों की प्रेम, करुणा, त्याग, बलिदान और वीरता की अद्वितीय कथा से होती है | जो उस गोटुल को महान बना देती है और वह एक महान गोटुल कहलाता है |
पिछले वर्ष 9 अगस्त, विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर देश के कई कार्यक्रमों से इसे विमोचित किया गया | यह भारत में आदिवासीयों पर केन्द्रीय ऐसा पहला साहित्य है, जिसे इस महत्वपूर्ण अवसर पर कई मंचों से विमोचित किया गया | तब इसे पारंपरिक वितरण प्रणाली में नहीं लाया गया, पर यह सोशल मिडीया में सबसे ज्यादा चर्चित विषय रही, इसलिए मार्केट में उपलब्ध न होने के बावजूद इसकी हजारों प्रतिया बिकी |
इस उपन्यास की व्याख्या कई दृष्टीकोण से की जा सकती है | पहला – इसमें न केवल बस्तर बल्की विश्व के समस्त आदिवासीयों की मूल सांस्कृतिक जीवनदर्शन की सरल व सहज व्याख्या की गयी है | दरअसल यह गोटुल संस्कृति के केंद्र में रखकर, सम्पूर्ण आदिवासी संस्कृति की व्याख्या है | इसे पढ़कर निश्चित ही यह दावा किया जा सकता है कि यह वो पहला किताब होगा, जो प्रकृति केन्द्रीत जीवनदर्शन को समझाने के लिए पढ़ा जाय | दूसरा – यह अपने पात्रों से संविधान की भी चर्चा करवाती है, अर्थात आदिवासीयों के संवैधानिक अधिकारों की सांस्कृतिक व्याख्या करती है | यहाँ लेखक के इस साहस की तारीफ़ करनी होगी की वह न केवल एक रोचक कथा बल्की पाठकों को उससे जुड़ी कानूनी समझ पैदा करने हेतु प्रोत्साहित करता है, इस बात की परवाह किये बगैर की पाठक कहीं इसे नकार न दें | तीसरा – यह आदिवासीयों की सांस्कृति व अधिकारों पर हो रहे, सांस्कृतिक अतिक्रमण को भी समझाती है अर्थात किस तरह धर्म व सत्ता मिलकर उसके सांस्कृतिक पहचान बदलने का प्रयास कर रहे है | यहाँ पाठक धर्म व उसकी सत्ता के उस नए रूप से परिचित होता है, जिससे वह खुद का पुनर्निर्माण करने पर मजबूर हो जाता है और चौथा – उक्त गम्भीर व कठीन विषयों को यह अत्यंत रोचक, सरल व बांधे रखने वाले ऐसे कथा से व्याख्या कर समझाती है, जो अब पाठक की नज़रों में एक महागाथा बनकर उभरती है | पाठक को यह अहसास ही नहीं होता कि वह इन विभिन्न ज्वलंत विषयों से परिचित हो चुका हैं, जिसे वह अक्सर नजरअंदाज करता है | वह बस इसकी रोचकता में खुद को बांधे रखता है | जहां इस उपन्यास की लेखनी सरल है, वहीं इतनी जीवंत की पाठक स्वयं उस विशाल गोटुल के सवीज पात्रों का हिस्सा बन जाता है | उपन्यास के रोचक कथा में एक वक्त ऐसा भी आता है, जब इस गोटुल का नया नामकरण भी होता है और इसे कह्पोल पेड़मों के नाम से पुकारा जाने लगता है अर्थात प्रथम संतान या वह संतान जिसे उसकी माँ ने अपने पहले गर्भावस्था से जन्म दिया हो |
यह उपन्यास सत्ता और नक्सलवाद से संघर्षरत सहजता की संघर्षगाथा है | यह मानवनिर्मित कृत्रिम व्यवस्थाओं, जो प्रकृति के विपरीत है, उन पर चोट करती है और पाठक को जीने का एक नया दृष्टीकोण देती है, जिसे उस गोटुल के सदस्य अब तक जीते है | यह पाठक को बस्तर और गोटुल संस्कृति के करीब लाकर खडा कर देती है और वह भी उन वेदनाओं को महसूस करने लगता है, जिसे वे दोनों कर रहे हैं | यह उन सारी वेदनाओं से पाठकों के परिचित करवाती है, जिससे आदिवासी जूझ रहे है | इसलिए यह उपन्यास महागाथा है और वह लिखीत दस्तावेज है, जो बस्तर के इतिहास व वर्तमान से परिचित कराने के साथ ही भविष्य में एक सबूत भी साबित होगा | पूरे देश में आदिवासीयों के बीच अत्यंत लोकप्रिय इस उपन्यास को १६ जुलाई को बस्तर के आदिवासीयों ने इसे अपना धरोहर घोषित किया तथा अब यह परम्परागत वितरण के साथ अमेजन पर ऑन लाइन भी उपलब्ध है | यह भविष्य में आदिवासी विषयों पर शोधार्थीयों को एक नया नजरिया देगा, सांस्कृतिक – धार्मिक मुद्दों पर बहस कराएगा, अपनी विशिष्ट लेखन शैली से लेखकों को प्रोत्साहित करायेगा और लिखित व्याख्या के अलावा कई अन्य रूपों में भी सामने आयेगा | यह उपन्यास प्रेमियों की पहली पसंद होने के साथ, सार्थक साहित्य पढ़ने वालो के लिए अमुल्य कृति है | निश्चित ही यह गोटुल, आदिवासी व बस्तर पर जिज्ञासुओ के लिए यह पहला किताब होगा |
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