झारखंड राज़ के महान प्रणेता मारंग गोमके ‘जयपाल सिंह मुण्डा‘

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झारखंड की अपनी अलग संस्कृति और अपनी समवृद्ध विरासत रही है, एवम झारखंड के वीरों का अपना अलग विशेष इतिहास रहा है ।आज मैं झारखंड के एक ऐसे शक्शियत की बात कर रहा हूँ जिन्होने आदिवासियों के लिये झारखंड राज की मांग की प्रथम नींव रखी थी । आप समझ गये होंगे , जी हाँ , मैं उन्ही महान शक्शियत ‘जयपाल सिंह मुण्डा’ की बात कर रहा हूँ जिसे झारखंड की जनता ने ‘मरांग गोमके’ से नवाजा था यानी एक महान अगुआ । जयपाल सिंह मुण्डा एक ऐसा नाम और एक ऐसा आदिवासी नेता हैं जिसने ना सिर्फ झारखंड आंदोलन को परवान चढ़ाया बल्कि उस आंदोलन के प्रणेता बनकर संविधान सभा मे पूरे भारत के आदिवासियों का प्रतिनिधत्व करते हुवे उनके हक के लिये संविधान मे आदिवासियों के लिये उचित व्यवस्था करने में महत्वपूर्ण भूमिका भी निभायी । वे एक अच्छे प्रवक्ता और प्रभावशाली आदिवासी नेता होने के साथ साथ वक्त और समय को भी भली भांति समझते थे । उनके अंदर संगठन बनाने की अद्भुत कला कूट कूट कर भरी थी ।

आज मै उस महान शक्शियत की कुछ बाते बताऊँगा जिसे मारंग गोमके यानी आदिवासियों का सर्वोच्च नेता कहा गया था । झारखंड की भूमि सिर्फ खनिज संसाधनों के लिये ही विख्यात नही है बल्कि झारखंड के इस पावन भूमि ने कई माटी के लाल पैदा किये थे जिसने अपनी प्रतिभा से पूरे विश्व का ध्यान अपनी ओर खींचा । ऐसे ही शक्शियत के धनी थे जयपाल सिंह मुण्डा जिसने अपने हरफनमौला व्यक्तित्व से अपने समाज मे अपनी एक अलग छवि बनाई ।  भारत की आजादी के पूर्व झारखंड आंदोलन की राजनीति मे उनका नाम अमर रहेगा ।

जयपालसिंह मुण्डा एक अच्छे नेता के साथ साथ भारतीय हॉकी के अच्छे अंतराष्ट्रीय खिलाड़ी भी थे । आदिवासी विकास की परिकल्पना को आधार देने वाले जयपाल सिंह मुण्डा का जोश और जज्बा आज भी आदिवासी समुदाय को रोमांचित कर देता है । बहूत कम लोगो को ये बात पता है की आदिवासियों के अधिकार के लिये लड़ने वाले मारंग गोमके का असली नाम ‘प्रमोद पाहन’ था ।

जयपाल सिंह मुण्डा का जन्म झारखंड के खूंटी नाम का एक छोटे से कस्बे मे 03 जनवरी 1903 मे हुआ था । इन्होने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा रांची के सैंट पॉल स्कूल से प्राप्त किया था । वहाँ के प्रधानाचार्य ने आगे की शिक्षा के लिये उन्हे इंग्लैंड भेजा । स्कूल की शिक्षा पाने के बात उन्होने उच्च शिक्षा ऑक्स्फर्ड विश्वविद्यालय से प्राप्त की । ऑक्स्फर्ड में ही उन्होंने हॉकी टीम में अपनी अलग जगह बना ली थी ।

1928 को एम्स्टर्डम ओलम्पिक द्वारा उन्हे भारतीय हॉकी को नेतृत्व करने की जिम्मेवारी सौंपी गई । यह वही हॉकी टीम थी जिसमे हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद भी उस टीम में एक खिलाड़ी की हैसियत से खेल रहे थे । जयपाल सिंह मुण्डा के नेतृत्व में 1928 को समर ओलम्पिक में भारतीय हॉकी टीम ने स्वर्ण पदक जीता था ।

आज उच्च शिक्षा प्राप्त अनेक युवाओं के लिये जयपाल सिंह मुण्डा एक प्रेरणा के स्त्रोत हैं जिन्होंने पढ़ने लिखने के बाद अपने समाज और देश के लिये अपनी सेवा समर्पित कर दी । मारंग गोमके की जीवनी उन भटके हुवे युवाओं को अच्छे रास्ते मे लाने का एक राह दिखाती है जो अपने समाज के खिलाफ काम करते है ।

जयपाल सिंह मुण्डा बालकपन से ही खेल कूद ,पढाई लिखाई ऐवम भाषण प्रतियोगिता में आगे थे । उनके अंदर की प्रतिभा को सबसे पहले सैंट पॉल के प्रधानाचार्य रेव.केकॉन कोसग्रेन ने पहचाना और वही उनके प्रारम्भिक गुरु भी थे, जिन्होंने उन्हे अपने समाज के उत्थान के लिये प्रेरित किया । जयपाल मुण्डा ने ऑक्स्फर्ड से एम ए की डिग्री हासिल की तो उन्हे इंग्लैंड में कई उच्च पद प्राप्त हुये और अपना परिवार बसाया । लेकिन एक दिन उनके गुरु ने उनसे कहा कि तुम्हरा समाज आज भी बहुत पिछडा है, शोषित है, उपेक्षित है क्यों नही तुम अपने समाज के लिये काम करते हो । यह बात जयपाल सिंह मुण्डा के जेहन में बैठ गई । उन्होंने इंग्लैंड छोड़ने का एक बहूत कठिन निर्णय लिया । अपना परिवार और उच्च पदों का त्याग कर वे भारत लौट आये । 1932 में उन्होंने अलग राज के आंदोलन में प्रवेश किया । उस समय जमशेदपुर के कारांदि में आदिवासी सभा की एक बैठक हुई । जयपाल मुण्डा वहां गये । लेकिन कोई वहाँ उन्हें नहीं जानते थे । लेकिन जब सभा को मालूम हुआ की इंग्लैंड से जयपाल सिंह मुंडा आये हुये हैं तो सारी सभा ने उन्हें सम्मान के साथ सभा का कार्यभार सौंप दिया । उस समय आदिवासी सभा छोटे छोटे इकाइयों ऐवम समुदायों मे बँटा हुआ था ।जयपाल सिंह मुण्डा ने उन सभी छोटी छोटी इकाइयों को संगठित कर उसे आदिवासी महासभा बनाया जिससे संगठन मजबूत और सशक्त बन गया ।

जनवरी 19 से 22, 1939 जयपाल सिंह मुण्डा और झारखंड आंदोलन के लिये ऐतिहासिक समय था । ‘आदिवासी महासभा’ के नेतृत्व में विशाल रैली निकली जिसमें एक लाख से भी ज्यादा आदिवासी जनसमूह उनका भाषण सुनने के लिये हिन्दपीढ़ी में एकत्रित हुये थे ।

जयपाल सिंह मुण्डा के व्यक्तित्व मे एक चुम्बकीय आकर्षण था । वे अपने व्यक्तित्व ऐवम अपने सम्भाषण से जनसामान्य खींचे चले आते थे । उनके भाषण से आदिवासी समुदाय के लोग इतने प्रभावित हो जाते थे की जन समुदाय उनको सुनने के लिये दुर दुर से पैदल सफर करके सभाओं मे सम्मलित होते थे । उनके भाषण हिंदी , अग्रेजी , मुण्डारी , नागपूरी मे बड़े सशक्त होते थे ।

अलग झारखंड राज्य की माँग के लिये 05 मार्च 1949 को ‘झारखंड पार्टी’ की स्थापना की गई । उनके जबरदस्त जन समर्थन को देखते हुये कई राजनीतिक दलों मे भय समा गया था । झारखंड पार्टी की सफलता यहां तक बढ़ गई की कहा जाता था की अगर नेहरू जी भी उनके खिलाफ चुनाव लड़ते तो हार जाते । 1952 के चुनाव मे झारखंड पार्टी के पास 33 सीट थे और 1957 के चुनाव मे 32 सीट ।

प्रतिभा के धनी जयपाल सिंह मुण्डा ने फिर रायपुर के ‘राजकुमार कॉलेज’ के प्रधानाचार्य का पद भी सम्भाला । 1939 के महा सम्मेलन में जरियागढ़ के महाराजा ने सम्मेलन में जाने के लिये अपना हाथी दिया, जिसपर बैठकर मारंग गोमके सम्मेलन तक गए । ऐसा अद्भुत नजारा पहली बार आदिवासी जनसमूहों ने देखा था ।

ऐसे प्रभावशाली आदिवासी नेता के प्रभाव को तोड़ने के लिये राजनीतिक दल कई प्रयास करने लगे । बिहार मे राजनीतिक लोग अलग झारखंड आंदोलन को दबाना चाहते थे । उनका प्रयास यह था की किसी भी तरीके से झारखंड पार्टी का विलय कॉंग्रेस के साथ कर दिया जाये ताकि अलग झारखंड राज्य के उस आंदोलन को समाप्त कर दिया जायें ।

आखिरकार 20 मार्च 1963 को छल प्रपंच, कूटनीति के बल पर विलय कर दिया गया । जिस महान आदिवासी नेता ने अलग आदिवासी राज्य झारखंड की परिकल्पना की थी उस राजनीतिक विलय ने उस आंदोलन का अंत कर दिया ।

20 मार्च 1970 को भले ही जयपाल सिंह मुंडा इस पार्थिक देह को छोड़ कर चले गये लेकिन उनकी कर्मठ जीवन आज भी हजारो लाखों लोगो के लिये एक मिसाल है । जयपाल सिंह मुण्डा अपने अदिवासी समाज को संगठित करने से लेकर उन्हे शिक्षा का महत्व ऐवम अपने समाज के विकास की राह की ओर ले जाने में उनका अविश्वसनीय योगदान रहा है ।

कई दशक पूर्व आदिवासियों के लिये अलग राज्य की परिकल्पना करने वाले जयपाल सिंह मुण्डा का सपना 15 नवम्बर 2000 को साकार तो हो गया लेकिन जैसी राज्य की उन्होंने कल्पना की थी वो आज भी साकार नहीं हो पाया है ।

जयपाल सिंह मुण्डा के महान त्याग के बारे मे शायद बहूत थोड़े लोग ही जानते होंगे । इंग्लैंड मे अपना बसा बसाया परिवार और उच्च पदों का त्याग कर अपने आदिवासी समाज के कल्याण के लिये अपना जीवन दाँव पर लगाने वाले महान विभूति जयपाल सिंह मुण्डा के त्याग को नही भूलना चाहिए।

ब्रिटिश इम्पायर जिसके विषय मे कहा जाता था की वहाँ का सूरज कभी अस्त नही होता ऐसे मे इंग्लैंड जैसे देश को त्याग कर जयपाल सिंह मुण्डा अपने आदिवासी समाज के उत्थान के लिये भारत आये और अपने आदिवासी समाज को संगठित करने के लिये एवम अलग झारखंड राज्य के निर्माण के लिये एक लम्बी लड़ाई लड़े । हम कह सकते है की अलग झारखंड राज्य के प्रणेता जयपाल सिंह मुण्डा ही थे ।

आज झारखंड एक अलग राज्य बन गया लेकिन एक बहूत ही महत्वपूर्ण सवाल उभर कर निकलता है की जिस झारखंड की परिकल्पना जयपाल सिंह मुण्डा ने किया उसे झारखंड के सियासतदार ने उसे उपेक्षित क्यों कर दिया? झारखंड राज बनाने मे जिस शक्शियत ने अपना सबकुछ त्याग कर एक स्वर्णिम अध्याय लिख दिया था आज उन सियासतदारों ने आखिर क्यों नज़रंदाज़ कर दिया? यह बहूत ही शर्मनाक बात थी की वे सियासतदार ऐसे अद्भुत व्यक्तित्व के धनी मारंग गोमके को शायद गहराई से समझ नहीं पाये या उन्हें समझना ही नहीं चाहते थे ।

लेकिन हमें एक बात नहीं भूलना चाहिये कि जिसने उपेक्षित , शोषित समाज के लिये अपना विलासिता पूर्ण जीवन का त्याग कर अपना सर्वस्व अपने समाज को दे दिया उनका योगदान हमारे समाज के लिये सम्मान की बात है । मारंग गोमके हमेशा आदिवासी समाज के लिये प्रेरणा के स्रोत रहेंगे ऐसे महापुरुष को शत शत नमन करते है ।


Image: http://keraientertainment.com/jaipal-sing-munda/

Raju Murmu

सोशल मिडिया ने मुझे लिखने के लिए प्रेरित किया। मेरा बचपन युवा होने तक बिहार की राजधानी में गुजरा । लेकिन कहीं ना कही मेरे अंदर झारखण्ड की मिटटी मुझे खींचती रहती थी। संतालपरगना मेरा पैतृक भूमि है। इस लिए मेरे लेखन में झारखंडीपन झलकता है। मैं अपने लेखन से भारत के विभिन्न राज्यो के जनजातियों की समस्याओं और उनकी सामाजिक विशेषता को अपने लेखन के माध्यम से उकेरने की कोशिश करता रहता हूँ।

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