अकेला हूँ
- वक्त तो है! - May 1, 2019
- पेड़ -लताओं के हुल - March 15, 2019
- पेट की आग से धुँआ निकलता नहीं - March 14, 2019
मेला और हाट बाजार
भरे लोगों के बीच
मैं बहुत अनाथ महसूस करता हूँ
हूँ सही में अकेला में।
गांव भर और परिवार में
लोग रहने पर भी
वक्त नहीं है लोगों का
मुझसे बात करने को।
सुध नहीं लेती है मेरी
कैसे हो दादाजी
उनकी है नहीं जिज्ञासा
कैसे बना था गांव और देश
जाती और समाज
और पेट भरने को हल।
उम्र की सूर्यास्त के समय
सही में मैं अकेला हूँ
मेरी कोई है नहीं
जिससे अपना दुःख प्रकट करूँ
खुशियाँ बांटू
और बीते हुए कल की
जीवन इतिहास कहूंगा।
इस प्रतियोगिता की युग में
थक गया हूँ मैं
लोगों को अब मेरी जरुरत नहीं
मैं बिन मधु का छत्ता जैसा
फेंक हुआ फटा कपड़ा जैसा
अब मई हूँ भरे लोगों के बीच
सही में बहुत अकेला।
Picture by: Subhendu Sarkar (courtesy – gettyimages)