स्टेज
हम स्टेज के मंच में गए ही नहीं,
और हमें बुलाया भी नहीं गया,
ऊंगली के इशारे से
हमारी जगह
हमें दिखाई गयी
हम वहीं बैठे रहे
हमें शाबासी मिली!
और वे स्टेज पर खड़े हो
हमारा दुःख-दर्द,
हमारी अत्याचार, शोषण,
को बताते चिल्लाये
ऐ आदिवासी भाईयों,
अब दुःख-दर्द मत सहो,
हमारा दुःख
अपना ही रहा,
कभी उन सत्ताधारियों का रहा नहीं
हमारी शंकायें, हम बड़बड़ाये
कान देकर सुनते रहे, हमारा दर्द हमें ही
सुनाते-सुनाते चीख रहे हैं पर कहीं
उनके भाषण में सुधार की आशा नहीं
और निःश्वास छोड़ा तथा हमारे कान
पकड़ कर धमकाया
माफ़ी मांगो नहीं तो…?
तुम जंगल में क्यों बसे हो
तुम्हें बेदखल किया जाएगा,
तुमने गुनाह किया है!
उसकी कड़ी सजा मिलेगी,
ऐसी गाथा पालतू तीतर बोला
ये सत्ता के पिंजरे में कैद है!
~ वाहरू सोनवाने
आदिवासी कवि और समाज सेवक, महाराष्ट्र.
(earlier published in Gondwana Darshan, February 2015 issue)
achchhi kavita ……………….
amazing one sir. keep writing.