ना कहना कि तब पता ही नहीं चला!
- ना कहना कि तब पता ही नहीं चला! - August 7, 2020
घर को जा रही थी सर पर टोकरा डाल कर,
सोचा नदी किनारे थोड़ा वक़्त गुज़ार लूँ ।
छोटी के साथ इतना खेली, इतना खेली,
कि समय का तब पता ही नहीं चला ।।
घर जाकर बाबा के साथ झूला झूलकर,
सोचा माँ के हाथ का खाना खा लूँ ।
बात करते-करते, छोटी कंधे पर सो गई,
सपने हम दोनों देख रहे थे, यह तब पता ही नहीं चला ।।
घर पहुंची तो देखा, माँ पोटली बांध रही थी,
सोचा माँ से उसका कारण पूछ लूँ ।
माँ ने बोला कि हम नए घर को जा रहे हैं,
मैं नासमझ थी, उन बातों का मतलब तब पता ही नहीं चला ।।
उस दिन बाबा को पहली बार रोता देखा,
सोचा आज मैं भी थोड़ा रो लूँ ।
पैरों से ज़मीन, सर से छत छिना,
इन बातों की गहराई का तब पता ही नहीं चला ।।
आज फिर अपने घर को बचाना है,
सोचा कि लोगों से मदद मांग लूँ ।
जल, जंगल, ज़मीन और ज़िम्मेदारी जितनी मेरी है उतनी है आपकी भी,
भूलोक के अंत के बाद ना कहना कि तब पता ही नहीं चला ।।
फोटो – adivasiinfo.net
Sab pata chal gaya ….. bahut hi dil ko chchulenewali kavita hai ….. Anima ko johar aur Zindabad ✊✊
What a remarkable poetry ❤