बॉक्साइट का अभिशाप और उत्तर बस्तर के बुधियारमारी गांव का संघर्ष

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Tameshwar Sinha

फोटो : बुधियारमारी गांव की महिला बुधनी महुवा सुखाते हुए. (तामेश्वर सिन्हा) 


“मैं यहां जो महुवा सूखा रही हूँ, इसके नीचे लाल पत्थर है. वो दूर-दूर तक लाल-लाल पत्थर है. इसको वे खोदेंगे, पहले भी खोदे हैं. लेकिन मैं नहीं छोडूंगी अपना घर, यहां मेरा देव है. मैं कैसे छोडूंगी? हटाएँगे तब भी नही हटूंगी! पूरा लाल जमीन है, पत्थर है, मेरे घर के नीचे भी, इसी से कब कब मैं घर पोताई कर लेती हूं,” उत्तर बस्तर कांकेर नगर से तीस किलोमीटर की दूरी पर एक पहाड़ी पर स्थित बुधियारमारी गांव की महिला बुधनी मुझे बता रही थी.

बस्तर में रिपोर्टिंग के दौरान एक ऐसे ही गांव जाना हुआ जहाँ पूरा गांव पलायन कर पहाड़ी के नीचे बस चुका था. उस पहाड़ी में मात्र तीन घर बचे हुए थे. वो भी एक ही परिवार के लोग निवासरत थे. कुछ सुअर इधर-उधर चर रहे थे. मुर्गियां चूजों को लेकर दाना चुन रही थी. बुधियारमारी की पहाड़ी में बसे तीन घरों की मुखिया प्राकृतिक वन संपदा महुआ बिन कर अभी लौटी थी और उसे जमीन में सुखाते यह बात कह रही थी.

उसके लाल पत्थर जमीन खोदना बार-बार दोहराने से मन मे जिज्ञासा उतपन्न हो गई थी, कि ये आखिर लाल जमीन पत्थर है क्या? जिसको लेकर वह महिला अपनी जमीन न छोड़ने की बात कह रही है. उसके घर से निकल कर मैंने जमीन को फिर देखा, तो पता चला वो तो बॉक्साइट है! और उसका घर उसी के ऊपर में है. जो परिवार पलायन कर चुके है, उनके भी घर उसी बॉक्साइट के ऊपर रहे होंगे.

छत्तीसगढ़ मध्यप्रदेश के अधीन जब आता था तब बुधियारमारी में 1986 के करीब ठेके से बॉक्साईड निकाला जा रहा था, कांकेर से आमाबेड़ा मार्ग में उसेली गांव के सड़क से परिवाहन किया जा रहा था.

कांकेर से बुधियारमारी जंगलो और घाटियों से होकर जाना था. रास्ते मे बड़ी-बड़ी गाड़ियाँ सड़क निर्माण में लगी हुई थीं. पेड़ों को काट, घाटी के पत्थरों को तोड़ कर रास्ता बनाया जा रहा था. एक समय लगा ग्रामीणों के आवागमन के लिए रास्ते बनाए जा रहे है. अंदर बीहड़ो में सड़के बन रही है. लेकिन जब रास्ते मे रुके हुए थे तो एक ग्रामीण दशरू से पानी मांगने पर मैंने पूछा, “अब तो मस्त सड़क बन रहा है?” ग्रामीण ने सीधा बोला, “गाड़ी ही नहीं है तो कहां चलाबो!”  वो ग्रामीण के कहने का अर्थ था कि उसके पास गाड़ी नही है तो इस नए सड़क में कैसे चलाएगा? वो तो जंगल वाले रास्ते से शार्ट कट मार के पहुंच जाता है.

अब जब बुधियारमारी पहुंच कर उस महिला से बात कर रहे थे तो पता चला यह पूरा क्षेत्र बॉक्साइट से परिपूर्ण है. हालांकि बॉक्साइट खनन कार्य अभी नहीं हो रहा है, न किसी को ठेका दिया गया है. लेकिन एक नजर में प्रतीत हो रहा था जैसे ये विकास का रास्ता कहीं ग्रामीणों के विस्थापन से गुजर कर बॉक्साइट तक पहुंचने के लिए तो नहीं है.

क्षेत्र में वन अधिकार पर कार्यरत समाजिक कार्यकर्ता केशव शोरी कहते हैं, “10 से 15 साल पहले बुधियारमारी में बॉक्साइट खनन का ठेके में कार्य किया जा रहा था, जो पहाड़ी के दूसरे तरफ उसेली गांव से होकर परिवाहन किया जा रहा था. पहले इस गांव में बहुत से घर थे, अचानक सब धीरे-धीरे नीचे उतरने लगे और गांव वीरान हो गया. अब तीन घर बाकी हैं, जो एक ही परिवार के लोग हैं.”

बुधियारमारी की आदिवासी महिला बुधनी ने बताया, “गांव में तीन घर हैं. सब नीचे जा कर टोडामरका नामक एक गांव में बस गए हैं. एक-एक कर सब नीचे चले गए. यहां पानी भी नहीं है, वो जंगल में 2 किमी दूर एक झरना है, वही से पानी लाती हूँ, मैं नहीं गई हूं, यही रहूंगी.”

बुधियारमारी गांव छोड़कर लगभग 30 परिवार टोडामरका गांव बसा चुके है. जो मुरागांव पंचायत के अधीन आता है. मुरागांव पंचायत के अधीन बुधियारमारी गांव भी आता है, लेकिन बुधियारमारी गांव के विकास के लिए आया हर एक पैसा मुरागांव में लगाया जाता है. बुधियारमारी में बनाए जाने वाला स्कूल मुरागांव में बनाया गया, बुधियारमारी में बनाए जाने वाला नल मुरागांव में बनाया गया. सरकार यह भूल गई कि जिस बुधियारमारी से बॉक्साइट निकाल रहे थे या निकालेंगे उसके ग्रामीणों की जरूरत के तमाम बुनियादी सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जा सकती है?

छत्तीसगढ़ मध्यप्रदेश के अधीन जब आता था तब बुधियारमारी में 1986 के करीब ठेके से बॉक्साईड निकाला जा रहा था, कांकेर से आमाबेड़ा मार्ग में उसेली गांव के सड़क से परिवाहन किया जा रहा था. उसी वर्ष के पहले से बुधियारमारी के ग्रामीण पलायन कर नीचे आना चालू कर चुके थे. दो साल ठेके से लगातार बुधियारमारी में बॉक्साईड निकालने के दौरान उस क्षेत्र में नक्सलियों की धमक चालू हुई, गाड़ियां जलाना, पर्चे बैनर देखने को मिलने लगे. नक्सली बुधियारमारी में बॉक्साइट खदान बिल्कुल नहीं चाहते थे. पांच साल लगातार बॉक्साईड दोहन के बाद नक्सली गतिविधियों के चलते ठेकेदार काम छोड़ के भाग गया.

बुधियारमारी पहाड़ी के नीचे बसे भैसगांव की पहाड़ी में भी बॉक्साइट है. भैंसगांव में बसे एक रमाकुमार बताते हैं, “हमर लइका मन ह नक्सलाइट नाम सुने है, हमन तो बाप जन्म जानत घलो नही रेहेन!” वह छत्तीसगढ़ी में कह रहा था उस समय नक्सली नहीं थे, नक्सलियों के बारे में सुना भी नही था. दस साल पहले अचानक  चहल-पहल बढ़ी, फिर अचानक पता चला कि सबसे ऊंचे पहाड़ी पर स्थित बुधियारमारी में बाक्साइट खदान खुल रहा है. बाद में खदान में नक्सली आए. रमाकुमार आगे कहते हैं, “खदान खुलना अभिशाप हो गया, बुधियारमारी उजड़ गया.”

प्रशासन के लोगों का आना जाना भी बन्द हो गया, राशन पानी के लिए बहुत दिक्कत होने लगी.

बता दें कि अब उस क्षेत्र में नक्सलियों की किसी प्रकार की मौजूदगी नहीं है, ग्रामीण खुद कहते हैं, पिछले 6 सालों से नक्सली इस क्षेत्र में आते नहीं हैं. गौरतलब हो कि उस क्षेत्र को पूरी तरह से नक़्सल प्रभावित क्षेत्र बताया जाता है!

मुखिया कहता है कि, “मैं जेल क्यों गया था एक साल बाद पता चला कि अंदर वालो से संपर्क रखने के कारण जेल भेजे थे. पांच साल बाद अभी छूटा हूँ.”

सोचनीय है कि सरकार जब 1986 के करीब पहाड़ से बॉक्साईड परिवाहन के लिए सड़क निर्माण कर सकती है. वो गांव वालों के लिए पानी, स्कूल, अस्पताल नहीं दे पाई थी, जो अब भी नहीं दे पाई है. ग्रामीणों को विकास के नाम पर सड़क दिया जा रहा है जो बॉक्साईड उत्खनन करने को लेकर संदेह के दायरे में आता है.

सरकारी रिकॉर्ड में बुधियारमारी गांव और जमीन के बॉक्साइट को कोंडागांव जिले के केशकाल में बताया गया है. यही नहीं आस-पास लगातार अवैध तरीके से बॉक्साइट खोदा गया है जिसके गड्ढे वाले निशान अब भी जिंदा हैं. बुधियारमारी पहाड़ी से नीचे उतरने पर 3 किलोमीटर चलने के बाद मुरागांव आता है, गांव में ही एक समय मे बॉक्साइट डंपिग यार्ड बनाया गया था, जो अब भी वहां मौजूद है.

क्षेत्र में आदिवासी युवा प्रभाग से काम कर रहे योगेश नरेटी बताते हैं, “बस्तर के केशकाल ब्लाक के कुएमारी पहाड़ी से लेकर बुधियारमारी पहाड़ी तक बॉक्साईड प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. यह पूरा पहाड़ी बेल्ट बॉक्साईड से भरा है. बीते सालों में कुएमारी से भी बॉक्साईड उत्तखन्न किया जा रहा था.” योगेश आगे बताते हैं, “कुए” और “मारी” गोंडी शब्द है जिसका अर्थ ही “टीला में सम्पन्नता” है. शायद क्षेत्र के बुजुर्गों को पहले से मालूम था कि यह अमूल्य चीज है इसीलिए ऐसा नाम रखा हो.

बुधियारमारी के आदिवासी ग्रामीण नीचे जा कर अब बस चुके हैं. बुधियारमारी गांव अब उझड चुका है. लेकिन आज भी बुधियारमारी में तीन परिवार निवासरत है और वह महिला बुधनी अडिग हो कर बुधियारमारी में रह रही है. उस महिला का घर उसी बॉक्साईड के ऊपर है जहां कभी उत्तखन्न के लिए उधोगपति लार टपकाते खोद डालेंगे.

बुधियारमारी से लौटते हुए हम, टोंडामरका, जंहा बुधियारमारी के ग्रामीण बस चुके हैं वहां पहुंचे, जहाँ हाल ही के दिनों में जेल से रिहा हुए एक ग्रामीण से भी मुलाकात हुई. ग्रामीण के जेल जाने का कारण नक्सल संपर्क था. जिसे घर से उठा कर राजधानी में पुलिस द्वारा गिरफ्तार करना बताया गया था. वह बुधियारमारी का मुख्य, एक ग्रामीण मुखिया था. मुखिया कहता है कि, “मैं जेल क्यों गया था एक साल बाद पता चला कि अंदर वालो से संपर्क रखने के कारण जेल भेजे थे. पांच साल बाद अभी छूटा हूँ. जब मैं छोटा था तभी बुधियारमारी में निचे उतर गए थे. उस समय बॉक्साईड निकाल रहे थे. ठेकेदार कहता था तुम्हारे घर के अंदर-अंदर से पाइप डाल के निकालेंगे जिससे घर भसक जाएगा. जाओ अच्छा जगह रहो. मेरे बाप दादा उसी समय नीचे आ गए, अब सब यहीं बस गए हैं. वह हमारे परिवार का राजस्व का पट्टा था, यहां वन अधिकार वाला है, 3 एकड़ का मिला है. मेरे बच्चे बंटवारा होंगे तो क्या दूँगा? यहां से समझ नही आता.” मुखिया आगे बताता है, यह पानी है, स्कूल भी है, लेकिन बुधियारमारी में कुछ भी नहीं था. “बुधियारमारी में खेती भी है हम खेती करने वहीँ जाते हैं.”

टोडामरका में ही रैमी बाई से मुलाकात हुई, वो कहती है, “हम बुधियारमारी छोड़ना नहीं चाहते थे, लेकिन मजबूरी भी था, वहां पानी नहीं था. मैं अपने बच्चों को पढ़ाना भी चाहती थी, स्कूल नहीं था क्या करते, इसीलिए नीचे आ गए. अब यह वैसे कोई दिक्कत नहीं होता, लेकिन बुधियारमारी हमारा पुरखौती घर है.”

आपको बता दें कि एक गांव आदिवासी संस्कृति में बहुत महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि उस गांव के बसने में उनके अनेक देव-पुरखा उस गांव में बसे हुए होते हैं, जिनकी वो पूजा करते हैं. बुधियारमारी की बुधनी जब घर से निकल कर जंगल की ओर इशारों में बता रही थी तो वो चारो दिशाओं में दिखती थी, इस जगह ये देव है उस जगह वो देव है. मैं खुद बुधनी की बातों को समझ नही पा रहा था. इतना जरूर था कि एक गांव आदिवासी संस्कृति से जुड़ी भावनाओं में बड़ा महत्व रखता है जिसे हमारा सभ्य समाज उझाड़ने मे उफ तक नही करता है.

आज उस क्षेत्र में सड़क निर्माण कार्य जोरों पर चल रहा है, लेकिन क्षेत्र के युवा खुद से कहते हैं कि सड़क बॉक्साइट के लिए है! खैर बुधियारमारी से नीचे आ चुके 30 परिवार के ग्रामीण अब बुधियारमारी को भुलाने की कोशिश कर रहे हैं. मुरागांव-टोडामरका और आस-पास जहाँ बॉक्साइट है, पास के खसगांव में मेला जाने की तैयारी में लगे हुए थे. सभी ग्रामीण मेला चले गए और हम वापस हो गए.

Tameshwar Sinha

तामेश्वर सिन्हा बस्तर में स्थित एक सक्रीय युवा पत्रकार हैं और पत्रकारिता के माध्यम से समाजसेवा का उद्देश्य लेकर चल रहे हैं। Tameshwar Sinha is a journalist based in Bastar and he aims to contribute to society with his journalism.

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