मेरी आदिवासियत की आवाज़

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मैं आपकी अवधारणाओं को सिधांत कैसे बना लूं?

जब आप मेरे अनुभव को कभी भी महसूस नहीं करते  

आरोपन के

दमन के

अलगाव के अनुभव!

जंगल से विस्थापन के 

जमीन खोने के

नदियां दूषित और 

बाधित होने के अनुभव! 

 

मैं आपकी अवधारणाओ को अस्वीकार करता हूँ क्योंकि

उन्होनें मुझे कैद किया!

पुराना करार दिया है

अपरिष्कृत करार दिया है

और भूलना नहीं

मुझे आत्मसात किया!

 

लेकिन क्या आप जानते हैं कि मैं क्या हूँ?

मैं प्रागैतिहासिक हूँ

मैं पहले भी मौजूद रहा हूँ

और मैं तुम्हारे बिना भी जारी रहूंगा

 

मैंने देखा है 

समुदायों को एक जुट होते 

और अपने अस्तित्व के लिए लड़ते

 

मैं एक आदिवासी हूँ 

और मेरी आदिवासियत

आपके वर्णन से कमजोर नहीं होगी 

 

आप पैसा कमाते हो 

ख्याति प्राप्त करते हो 

और मुझसे ही सवाल करते हो

कि मैं अपने अनुभव को व्यक्त क्यों नहीं करता?

 

आप लेख और आलेख लिख सकते हो

लेकिन मेरे कथन, मेरे अनुभव

अनदेखे,

अनभिज्ञ,

और अचेतन में व्याप्त रहेंगे

 

जो कि मेरे पूर्वजों द्वारा

मुझे हस्तांतरित किया गया है

 

आप जो लिखते हैं  

वह शायद एक दिन नष्ट हो जाएगा 

लेकिन मुझे जो विरासत में मिला है, 

वह रहेगा

सजीव होगा 

और सदा बना रहेगा।


इस कविता का इंग्लिश से हिंदी अनुवाद जेवियर इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल सर्विस, रांची की छात्रा जेसिल डांग ने किया है।

Manish Surin

Manish Surin is pursuing his M.A. Social Work in Dalit and Tribal Studies and Action from Tata Institute of Social Sciences, Mumbai. His current research is focused on Pathalgadi Movement in Jharkhand and Assertion of Tribal Self Rule; wherein he seeks to unravel its perspectives from within.

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