मानव पूँजी से हो सकता है एक बेहतर भविष्य का निर्माण
पूंजी को विभिन्न प्रकार से सोचा जा सकता है, जैसे – भौतिक पूँजी, वित्तीय पूँजी, सामाजिक पूँजी, प्राकृतिक पूँजी, मानव पूंजी इत्यादि|
भौतिक पूँजी, मशीनें हैं और मनुष्य उसे जैसा चाहे चला सकता है लेकिन ये मशीनें जब शक्तिशाली रोबोट में ढलने लगती हैं तो उत्पादन के लिए मजदूरों की जरुरत कम होने लगती है| उत्पादन में वृद्धि होती है लेकिन उसका बंटवारा सीमित हो जाता है और सारे–के–सारे आय मशीन के मालिक को चला जाता है| असमानता की शुरुवात छोटे और कम जटिल मशीन वाले उत्पादन केंद्रों में, बंटवारे की अच्छी नियत नहीं होने की वजह से होती है, लेकिन जहाँ रोबोट का इस्तेमाल हो रहा हो तो वहां बदनियत और रोबोट दोनों ही मजदूरों को खा जातीं हैं| हर उत्पादनकर्ता फायदा चाहता है और उसके लिए वो उन्ही संसाधनों का इस्तेमाल करेगा जो ज्यादा फायदेमंद है|
वित्तीय पूँजी, – रुपये, पैसे, स्टॉक और सिक्योरिटीज से सम्बंधित हैं जिसे सामान्य तौर पर हर खाताधारी निवेश करता है| साधारण भाषा में सामजिक पूँजी को सामाजिक व्यवस्था में होने वाले एक–दूसरे की सहायता के रूप में देखा जा सकता है| एक पढ़ा–लिखा व्यक्ति पूरे गांव को अगर किसी प्रकार से आगे ले जाने के लिए सोचता है और वास्तव में आगे लेकर जाता है, तो वो सामाजिक पूँजी के साथ–साथ मानव पूँजी भी है|
प्रकृति जो हर प्रकार से मनुष्य के जीवन का आधार है जैसे – हवा, पानी, पेड़, पौधे, नदी झरने इत्यादि प्राकृतिक पूँजी है| प्राचीन काल से ही प्राकृतिक पूँजी मनुष्य के जीवन का आधार बना हुआ इसे विस्तृत रूप से वर्णन नहीं बल्कि समझने की जरुरत है| पढ़ा–लिखा व्यक्ति, मशीन को चला सकने वाला व्यक्ति, जटिल समस्यावों को आसानी से कर सकने वाला व्यक्ति को मानव पूंजी कहते हैं| अक्सर, मानव पूंजी ही, भौतिक पूँजी और वित्तीय पूँजी को नियंत्रण करता है| इस मानव पूँजी में अगर हम सामाजिक पूँजी और प्राकृतिक पूँजी के गुण भरें तो इस दुनिया को और भी बेहतर बनाया जा सकता है| जाहिर है बेहतर मानव पूँजी बनाना आसान नहीं है – समय, मेहनत, वित्तीय पूँजी और मशीनों की बहुत जरुरत होती है| आईये वित्तीय पूँजी का इस्तेमाल विश्व स्तर पर, देश, और राज्य के स्तर पर अन्य पूँजी के निर्माण, खासकर मानव पूँजी के निर्माण में किस प्रकार से हो रहा है उसे समझने की कोशिश करते हैं|
2016 के विश्व बैंक के लगभग 103 देशों के आंकड़ों के अनुसार अपनी सकल घरेलु उत्पाद के सापेक्ष शिक्षा पर सबसे ज्यादा खर्च करने वाला देश है ग्रेनेडा, जो अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 10 प्रतिशत हिस्सा खर्च करती है| ग्रेनेडा के बाद द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ, एवं पांचवां स्थान रखने वाले देश क्रमशः – नार्वे, स्वीडेन, आइसलैंड, और बेलीज़ हैं| जीडीपी का 6% या 6% से अधिक खर्च करने वाले ऊपर लिखित 5 देशों के अलावा और 19 देश हैं जैसे – कोस्टारिका, फ़िनलैंड, उज्बेकिस्तान, भूटान, मोल्दोवा, किर्गिज रिपब्लिक, बेल्जियम, न्यूजीलैंड, होंडुरस, अरूबा गुयाना, साउथ अफ्रीका, इजराइल सेंट लुसिया, सेंट विन्सेंट, वेस्ट बैंक, चेक रिपब्लिक, अर्जेंटीना और ऑस्ट्रिया हैं| श्रीलंका का स्थान 3.47% खर्च के साथ 81वां है, 3% के साथ पाकिस्तान का 89 वां, और बांग्लादेश 1.53% के साथ 101 वें स्थान पर है| भारत का स्थान, 2014 के अनुसार लगभग 55 वें रैंक के आसपास माना जा सकता है जो की 2016 में 55वें रैंक से ऊपर जरूर पहुंच जाएगी ऐसा अनुमान है|
2014-15 के नीति आयोग के आंकड़े के अनुसार, भारत के अंदर सकल राज्य घेरलू उत्पाद (जीएसडीपी) का 6% के करीब या इससे ज्यादा खर्च करने वाले राज्य हैं – मिजोरम, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, और असम| जीएसडीपी का सबसे ज्यादा 10.16% खर्च करने वाला राज्य है, मिजोरम| रैंकिंग पर सबसे नीचे है — महाराष्ट्र, जो अपने जीएसडीपी का महज 0.15% खर्च करती है जो की 27वें रैंक पर है| इसके ऊपर है, तेलंगाना जो अपने जीएसडीपी का लगभग 1.34%, और गुजरात, कर्नाटक, और पंजाब अपने जीएसडीपी का लगभग 2% खर्च करती हैं| 2000 में बनाये गए नए राज्यों जैसे – झारखण्ड, छत्तीशगढ़ और उत्तराखंड क्रमशः 18वें, 8वें और 16वें स्थान पर है| इन नवोदित राज्य, जिन राज्यों से निकलें हैं उनके स्थान क्रमशः बिहार 10 वां, मध्य प्रदेश 11 वां, तथा उत्तर प्रदेश का स्थान 12 वां है| केंद्र शासित प्रदेशों में शिक्षा को ध्यान देने के मामले में दिल्ली सबसे ज्यादा चर्चित प्रदेश रहा है| 2017-18 में दिल्ली सरकार ने अपने जीडीपी का लगभग 16% शिक्षा में खर्च किया| 2019-20 में भी इन्होने अपने बजट का लगभग 27.8% हिस्सा शिक्षा के लिए आबंटित कर रखा है|
ध्यान रहे की 1964-66 के राष्ट्रीय शिक्षा आयोग के अध्यक्ष दौलत सिंह कोठरी जिसे कोठारी कमिशन भी कहा जाता है, ने सिफारिश की थी कि भारत को अपने जीडीपी का 6% हिस्सा शिक्षा में खर्च करना चाहिए| हालाँकि इस सिफारिश पर 1986 के राष्ट्रीय शिक्षा आयोग में ही ध्यान दिया जा सका और अभी भी भारत अपने जीडीपी का सिर्फ 4% हिस्सा ही छूने की कोशिश कर रहा है| इस कमीशन ने अपने लेखन की शुरुवात ही इस पंक्ति से की थी – “The Destiny of India is being Shaped in the Classrooms”| प्रति छात्र और प्रति बच्चे शिक्षा के क्षेत्र में होने वाले खर्च के दृष्टिकोण से गोवा, केरल, महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु सबसे आगे हैं, जबकि उत्तर प्रदेश, झारखण्ड, बिहार और बंगाल सबसे निचले पायदान पर हैं| इस मामले में झारखण्ड 18 राज्यों और केंद्र शासित राज्यों की सूची में 17 वां, जबकि छत्तीशगढ़ 6 वें स्थान पर है|
फिलहाल, इतना साफ़ है, जो देश, जो समाज मानव पूँजी पर जितना ज्यादा वित्तीय पूँजी लगाएगा वो उतना ही आगे बढ़ेगा| वैसे, आने वाले दिनों में जब भारत के जनसँख्या वृद्धि दर घटने के संकेत मिल रहे हैं, प्रति पढ़ने वाले बच्चों की तुलना में स्कूल की उपलब्धता बढ़ेगी जिससे की दो या तीन स्कूलों को एक में शामिल करने की गुंजाईश ज्यादा है| वास्तव में इसकी शुरुवात झारखण्ड में भी हो चुकी है|
फ़ोटो : SCOO NEWS