“आदिवासी जीवन दर्शन हमारे अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण”—यूट्यूबर और संगीतकार नीरज कुमार भगत (NKB) से बातचीत
उरांव समाज से, घाघरा, गुमला के निवासी—नीरज कुमार भगत, नागपुरी/सादरी के प्रसिद्ध यूट्यूबरर्स में से एक हैं, जो प्रसिद्ध यूट्यूब चैनल “NKB PICTURES” चलाते हैं| वर्तमान में वह आदिवासी रिवाजों और परम्पराओं से जुड़े तत्वों को अपने म्यूजिक और वीडियो एल्बम के माध्यम से बाकि दुनिया से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं| नीरज का मानना है कि संगीत के माध्यम से आदिवासी अपनी संस्कृति को जान पाएंगे और अपनी संस्कृति के लिए अपनत्व महसूस कर पाएंगे| नीरज अपने हुनर के सहारे म्यूजिक और वीडियो को नयी और सार्थक दिशा देने में अपना महत्वपूर्ण योगदान देना चाहते हैं|
अभी के समय में आदिवासी म्यूजिक इंडस्ट्री विभिन्न क्षेत्रों और राज्यों में अपने आप को इस्थापित कर चुकी है| सादरी, कुरुख, संथाली, हो, मुंडारी, गोंडी, आदि आदिवासी भाषाओँ के गीत संगीत आदिवासी बहुल राज्यों और क्षेत्रों में कई सालों से कैसेट और सीडी के माध्यम से अपनी पहचान बना चुके हैं, जिनमें आदिवासी समाज, उनकी संस्कृति और पहचान की झलक भी देखने को मिलती है| अभी के समय में यह माध्यम यूट्यूब जैसे वेबसाइट से ज्यादा से ज्यादा युवाओं और अन्य लोगों तक जुड़ रहा है| इस अल्टरनेटिव आदिवासी म्यूजिक इंडस्ट्री की महत्वता को ध्यान में रखते हुए आदिवासी रिसर्जेंस (ए आर) ने युवा यूट्यूबर नीरज कुमार भगत (एन के बी) से बातचीत की, जिसका एडिटेड रूप यहाँ प्रस्तुत है :
ए आर : जोहार नीरज जी| जैसा कि हम जानते हैं, आपके ज्यादातर म्यूजिक और वीडियो आदिवासी समाज से जुड़े हुए हैं| फिलहाल आप किन नए प्रोजेक्ट्स में काम कर रहे हैं?
एन के बी : जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद| मेरा मुख्य उद्देश्य आदिवासी रिवाजों और परंपरा से जुडी चीजों को म्यूजिक के सहारे बाकि दुनिया से जोड़ना है| मुख्यतः अभी मैं म्यूजिक और वीडियो एल्बम को लेकर गंभीर हूँ और कुछ नया करने की कोशिश कर रहा हूँ| अभी तक हम ऐसे 10 गीत और म्यूजिक वीडियो बना चुके हैं| जैसा कि आप जान रहे हैं कि इस फील्ड में अभी बाहरी लोग घुसे हुए हैं जो कि आदिवासी संस्कृति को गहराई से नहीं जानते, वैसी स्थिति में आशानुरूप म्यूजिक और वीडियो नहीं निकल पा रहे हैं| जब तक आप आदिवासी संस्कृति के बारे में जानेंगे नहीं, आप संगीत से अपनत्व महसूस नहीं कर पाएंगे, फिर म्यूजिक और वीडियो को नयी और सार्थक दिशा नहीं मिलेगी| मैं काफी पहले से इस दिशा में सोचता रहा हूँ और मुझे लगता है कि, मैं इस ओर एक सार्थक दिशा दे सकता हूं| इसके साथ ही मैं “एड़पा काना” जैसी जबरदस्त फिल्म देने वाले आदिवासी फिल्म निर्माता निरंजन कुमार कुजूर से भी सलाह लेता रहता हूँ| आगे मेरी फिल्म बनाने की भी योजना है और निरंजन जी के साथ भविष्य में काम भी करना चाहूंगा|
ए आर : आपने म्यूजिक वीडियो बनाने की शुरुआत कहाँ से की थी? थोड़ा अपने सफर के बारे में हमें बताएं!
एन के बी : दरअसल शुरुवात मैंने ऑडियो से की थी, फिर उसका वीडियो बनाना शुरू किया| इस प्रकार 2011 में पहला म्यूजिक वीडियो बनाया था, जो कि एक हिप-हॉप गाना था- “निंगहय एन्देर नामे (आपका नाम क्या है)”, और यह कुँड़ुख़ भाषा में था| उस समय हमें पता ही नहीं था कि इसे रिलीज कैसे किया जाये, क्यूँकि उस समय यूट्यूब का उतना प्रचलन हमारे लोगों में नहीं था और इंटरनेट इतना सस्ता भी नहीं था जितना कि अभी के समय में है| फिर, ये म्यूजिक वीडियो बस ऐसे ही रखा हुआ था| बाद में, जब इंजीनियरिंग में मेरा एडमिशन हुआ फिर दोस्तों के साथ मिल करके हमने कुछ करने का सोंचा, फिर तब से काम करते ही जा रहे हैं|
ए आर : आपने जो फील्ड चुना है, उसमें सबको संघर्ष करना पड़ता है| आप इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे, फिर भी नियम से हटकर एक अलग से करियर का चुनाव करना इतना आसान नहीं रहा होगा, फिर भी आपने पूरे दिल से इसका चुनाव किया| आपकी यात्रा अभी तक कैसी रही है?
एन के बी : वैसे साधारण तौर पर भी संघर्ष तो जीवन पर्यन्त चलता रहता है फिर भी मुझे लगता है कि जब तक एक ‘मानक’ न सेट कर लें तब तक हमेशा बेहतर करने की कोशिश जारी रहेगी| निहायत ही, आज के समय में जब सभी कोई सरकारी नौकरी की दौड़ में लगे हैं वैसे समय में ऐसे करियर का चुनाव करना एक कठिन काम था| सर्वप्रथम घर वालों की शंका थी कि ये सब करके क्या मिलेगा, घर कैसे पालोगे इत्यादि-इत्यादि| लेकिन अगर आपमें टैलेंट है और निर्णय लेने की क्षमता भी, तो आपको कोई नहीं रोक सकता| इतना जरूर है कि हर काम की तरह जब तक आपकी कोई आय न हो, या घर वाले संघर्ष के समय आपका साथ न दें तो आगे बढ़ने में मुश्किल जरूर होती है लेकिन अपने जूनून वाले काम में जोखिम तो लेना ही पड़ता है और हमने जोखिम लिया है| अभी, मैं अपने यूट्यूब चैनल से पर्याप्त आय कमा लेता हूँ और साथ ही इसी आय से आगे भी म्यूजिक वीडियो बनाते जा रहा हूँ|
ए आर : जैसा की आपने बताया कि आपने काम की शुरुवात 2011 में ऑडियो से की थी. फिर 2013 में ऑडियो से वीडियो बनाना शुरू किया. तो इस सफ़र में आपको किसका किसका साथ मिला?
एन के बी : मुझे इस सफर में किसी का भी साथ नहीं मिला और आदिवासी परिवार में पैदा होने का मतलब आप भी समझते हैं कि हमारे परिवार में सरकारी नौकरी से ज्यादा कुछ नहीं सोचा जाता है| कुल मिलाकर ये समझ लीजिये कि हम बस अपने दम पर बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं| इस फील्ड में काफी लोगों की जरुरत होती है लेकिन कुछ नया करने के मामले में आत्मनिर्भर होना बहुत जरुरी है|
यहाँ की कहानी कुछ इस तरह है कि — मेरे भाई के पास एक कंप्यूटर था और उसमे एक सॉफ्टवेयर था जिसमें मैं ‘रेडियो धूम’ के लिए सादरी गानों को रीमिक्स करता था| ‘रेडियो धूम’ उस समय नया-नया था और कॉपीराइट के बारे में मुझे ज्यादा जानकारी नहीं थी तो हमने अपने हिसाब से पुराने गानों को रीमिक्स करके गाने बनाने लगे| धीरे-धीरे जब मेरे द्वारा रीमिक्स गाने चर्चित होने लगे और गानों को लोग पसंद करने लगे तो जिन पुराने गानों को मैंने रीमिक्स कर दिया था उन गानों के गायकों को दिक्कत होने लगी और उन्होंने मुझे कहा कि तुम इस तरीके से रीमिक्स नहीं कर सकते क्यूँकि तुम्हारे पास कॉपीराइट नहीं है| ‘रेडियो धूम’ में मैं काफी जूनियर था फिर मैंने निश्चय किया कि अब खुद गाने बनाऊंगा और जरुरत के हिसाब से रीमिक्स भी करूंगा| और इस प्रयास में मुझे काफी मदद मिली और उसके बाद मैंने पीछे मुड़ के नहीं देखा और अब मेरे द्वारा रीमिक्स किये गए गाने, डांस इंडिया डांस, बूगी-वूगी में झारखण्ड से गए प्रतिभागियों द्वारा इस्तेमाल किये गए हैं और रीमिक्स गानों को भी काफी सराहा गया, साथ ही मिक्सिंग की तारीफ़ भी की गयी| इस प्रकार कॉपीराइट मुद्दे ने मुझे आत्मनिर्भर बना दिया और आगे भी ऐसे ही काम करते रहने की प्रेरणा भी मिली|
ए आर : ऑडियो और वीडियो के साथ ही साथ, क्या आप भविष्य में कुछ और भी करना चाहेंगे?
एन के बी : जैसा की मैंने पहले भी कहा, कि आगे मेरी फिल्म बनाने की भी योजना है. मैं दक्षिण भारतीय सिनेमा उद्योग से काफी प्रभावित हूँ. ये फ़िल्में वहां के कल्चर और परम्पराओं, प्रकृति और पर्यावरण को जिस तरह दर्शाती है तथा तकनीक का इस्तेमाल करती है, वह सराहनीय है| फिल्मों का एक मकसद ये भी होता है कि लोगों को वर्तमान और भविष्य को लेकर मनोरंजन के साथ कुछ सार्थक सन्देश भी दे सकें| फिलहाल झारखंड के इलाके में ऐसा कुछ नजर नहीं आया है| फ़िल्में तो बहुत कम बन ही रहे हैं लेकिन ऑडियो-वीडियो म्यूजिक भी बहुत कम ही देखने को मिल रह रहा है| देखा जाये तो हम लोग तकनीकी रूप से भी काफी पिछड़े हुए हैं और बिना तकनीकी ज्ञान को अभी के समय में पैठ बनाना इतना आसान नहीं है| मेरी इच्छा है कि हम पुरखों की वास्तविक कहानियां और इतिहास सादगीपूर्ण रूप से निकाल पाएं और भविष्य में ज्यादा अच्छे से परोस पाएं|
ए आर : कृपया भविष्य को लेकर अपनी योजनाओं के बारे में भी बताएं?
एन के बी : एक चीज साफ़ है कि मुझे सरकारी नौकरी नहीं करनी है| जो काम मैं कर रहा हूँ मुझे बहुत पसंद है| धीरे-धीरे ही सही लेकिन मुझे यकीन है कि मैं इस क्षेत्र में बढ़िया काम करूंगा| बहुत सारे लोग इस व्यवसाय से जुड़े हुए हैं और वो काफी पढ़ने के बावजूद बढ़िया नहीं कर पा रहे हैं लेकिन मैं काफी सारे काम यूँ ही आसानी से कर पा रहा हूँ, तो मुझे लगता है कि मेरा हुनर इसी क्षेत्र में है| काफी सारे लोगों से बहुत कुछ सीख रहा हूँ और मुझे लगता है कि जल्दी सीखने की काबिलियत मुझमें है|
ए आर : समयानुकूल आसान नौकरी के रास्ते पर न चलकर कुछ नया करने की ख़्वाहिश के लिए जबरदस्त जज्बा चाहिए, जो कि आपमें दिखता है| हमारे बच्चों के लिए और आने वाली पीढ़ी को म्यूजिक, वीडियो, फिल्म इत्यादि से सम्बंधित कुछ सन्देश देना चाहेंगे?
एन के बी : मेरा पहला सन्देश यही है कि जो मन में है वो करो और दिल से करो. आजकल के बच्चों और युवाओं में मानसिकता कुछ इस प्रकार है कि जो करियर चमचमाता दिखता है, वे उधर ही भागते हैं. यह बहुत जरुरी कि आप वो काम करो जिसमें आपको आनंद आता हो, किसी बाहरी दबाव में करियर का चुनाव न करें| मेरा उदहारण लीजिये, मैंने इंजीनियरिंग घर वालों के दबाव में किया जबकि इसमें मुझे कोई रूचि नहीं थी| मुझे दिल्ली विश्वविद्यालय या बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में जाकर ‘बैचलर ऑफ़ फाइन आर्ट्स’ करने का बड़ा मन था लेकिन मैं वो नहीं कर पाया| जिस समय ‘फाइन आर्ट्स’ के एडमिशन का परिणाम आया मैं बड़ा दुखी था क्यूंकि उस साल मैं बारहवीं में रसायन शास्त्र में असफल हो गया था जिसकी वजह से दाखिला नहीं ले पाया| जब दूसरी बार मौका आया तो मेरी उम्र नकल चुकी थी और अंततः मुझे इंजीनियरिंग में एडमिशन लेना पड़ा|
ए आर : आप इस दिशा में पिछले लगभग 7 सालों से काम कर रहे हैं और लगभग 10 म्यूजिक वीडियो बना लिए जो कि किसी-न-किसी तरीके से आदिवासी समुदाय का प्रतिनिधित्व करता है| अपना कोई ऐसा अनुभव साझा करना चाहेंगे जिसमे की आपको लगता है कि आपने किसी आदिवासी मुद्दे को छूने की कोशिश की है और गानों, वीडियो इत्यादि के माध्यम से परंपरा और किसी आदिवासी समस्या को सामने रखा हो?
एन के बी : मुझे लगता है, अभी तक तो बहुत ज्यादा प्रतिनिधित्व तो नहीं दे पाए हैं लेकिन हमारी कोशिश रही है कि हर गाने में कुछ-न-कुछ आदिवासी परंपरा का प्रतिनिधित्व नजर आये और मुद्दों से गुजरते हुए गाने आएं| आप देखेंगे कि आज कल युवा आदिवासी बच्चे (खास कर के शहरी क्षेत्रों में रहने वाले या मध्यम वर्ग परिवार के) अपनी परंपरा और कल्चर से भागते हुए नजर आते हैं, और अपनी ही चीजों को हीन भावना से देखने लगते हैं. समझते हैं कि हमारा जीवन दर्शन, भाषा, कल्चर समृद्ध नहीं है| मैगी के इस युग में आदिवासी बच्चे बासी भात और मड़ुआ रोटी के आनंद को नहीं समझ पाते हैं. लेकिन हमें यकीन है कि हम उन्हें ये मनोरंजन के माध्यम से अपनी चीजों पर गर्व करना जरूर सीखा पाएंगे|
आज-कल बच्चों को अक्सर आप अपनी आदिवासी पहचान से छिपाते हुए देखेंगे, वो अपने आप को नए तथाकथित मुख्यधारा के अनुसार ढालते हुए पाए जायेंगे| खैर हम लोग तो ‘हिंदी माध्यम’ स्कूल से पढ़े हैं और अब कोशिश हो रही है कि अंग्रेजी माध्यम वालों को भी ‘ओये ओये’ करने का मौका दें| ‘लाल पाड़’ साड़ी की सादगी को हमने नए तरीके से ‘ओये ओये’ गाने में सजाने की कोशिश की है और मुझे नहीं लगता है इस गाने में कोई झूमे बिना और गर्व महसूस किये बिना रह पायेगा| गाने और वीडियो के साथ-साथ अपने जीवन से जुडी हुई चीजें भी परोसनी है मतलब — मैगी खाओ, अंग्रेजी बोलो लेकिन मड़ुआ रोटी और मातृ भाषा न छोड़ो| इस (लाल पाड़ में निकलिसला तो…..) गाने को काफी सराहा गया, काफी व्यूज और शेयर मिले हैं, इसे आदिवासी समुदायों के अलावा और लोग भी देख रहे हैं इससे हमें आत्मविश्वास बढ़ा है|
ए आर : आप आदिवासी समाज को भविष्य में किस तरह से देखना चाहते हैं और आपकी आदिवासी समाज के प्रति दूर दृष्टि क्या है?
एन के बी : मेरा मानना है कि आदिवासी अपने रिवाज और परंपरा न छोड़ें, क्यूंकि ये हमारे अस्तित्व के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण हैं| हमारी परंपरा और जीवन-दर्शन इतनी समृद्ध है कि यही हमें आगे बढ़ने और जीने के लिए प्रेरित करता रहेगा| हमारे रोज-मर्रा के जीवन में जैसे – मांदर, शादी के तरीके, सरहुल, करम इत्यादि हमारे जीवन में गहरे रूप से उतरे हुए हैं, जो हमें अन्य जातीय और धार्मिक समुदायों से अलग करती हैं और प्राकृतिक रूप से जीने का अवसर देती हैं| बस हमें प्रकृति की गहराई में सामंजस्य बनाये रखते हुए आगे बढ़ते रहना है|
नीरज कुमार भगत – YouTube और Instagram.
आदिवासी रिसर्जेंस की ओर से गणेश मांझी, अतुल खलखो, रोशन उरांव और दीप्तिश उरांव ने नीरज कुमार भगत से बात की।
गणेश मांझी, सिमडेगा, झारखण्ड से हैं और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में PhD शोधार्थी हैं। साथ ही अभी गार्गी कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर(अर्थशास्त्र) के रूप में कार्यरत हैं।
रोशन उराँव, रांची, झारखण्ड से हैं और आई.आई.टी. खड़गपुर से स्थापत्यकला तथा योजना में स्नातक हैं। वे सरना यूथ वेलफेयर ग्रुप के भी सदस्य हैं।
अतुल खलखो, रांची, झारखण्ड से हैं और आई.आई.टी. रूड़की से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक हैं, साथ भी आई. आई. एम. अहमदाबाद से बिज़नेस एडमिनिस्ट्रेशन में स्नातकोत्तर हैं। अतुल भी सरना यूथ वेलफेयर ग्रुप के भी सदस्य हैं।
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