सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद, अब सरकार ने वन अधिकार कानून में ग्राम सभा के अधिकारों को छीना

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सत्ता द्वारा न्यायालय की आड़ में आदिवासियों और अन्य पारम्परिक वन निवासियों को 27 जुलाई तक जंगल खाली करने के आदेश, फिर स्थगन का आदेश – इसी बीच जंगल वाले इलाकों में प्रोजेक्ट और उद्योग को प्रोत्साहन देने के लिए ग्राम सभा की अनुमति लेने की जरुरत नहीं और ना ही वनाधिकार कानून अनुपालन की बंदिश – उद्योगपति, राजनीति और न्यायालय के बीच सम्बन्ध के बारे में बहुत कुछ कह जाती है| ऐसा प्रतीत होता है मानो सत्ता ने न्याय की मूर्ति से कहा है कि ‘चुनाव तक रूक जाओ फिर जो करना है कर लेना’|

चुनाव आचार संहिता के ठीक 3 दिन पहले 200 बिंदु रोस्टर के लिए अध्यादेश लाना और दूसरे ही दिन उच्चतम न्यायालय में इस अध्यादेश को फिर से चुनौती देना यह भी दर्शाता है कि विभिन्न आदिवासी-विरोधी गुटों द्वारा न्यायालय में इस मुद्दे को घसीटने की कोशिश जारी है|

सुप्रीम कोर्ट ने आदिवासियों को जंगल के इलाके खाली करने के आदेश स्थगित (27 फरवरी को सरकार के आवेदन पर विचार करते हुए उच्चतम न्यायालय के जस्टिस अरुण मिश्रा, नवीन सिन्हा और एम. आर. शाह की खंडपीठ ने फिलहाल के लिए जंगल के इलाके खाली करने के 13 फ़रवरी के फैसले को स्थगित कर दिया है) करने से एक दिन पहले एक और काम चुपचाप कर लिया| इसके बारे में मीडिया ने बताया नहीं और अगर खबर दी भी तो फैले युद्धोन्माद में कहीं खो गया| इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार — जंगल के इलाके में कोई उद्योग-धंधे प्रोजेक्ट लगाने के लिए वनाधिकार कानून का पालन और ग्राम सभा की अनुमति लेने की जरुरत नहीं है| वन संरक्षण संशोधन नियम के मुताबिक जंगल वाले इलाके में कोई भी प्रोजेक्ट शुरू करने के प्रस्ताव पहुँचने से पहले जिलाधिकारी को वनाधिकार कानून के तहत प्रभावित ग्राम सभा की सहमति (consent) लेनी होती है| ये नियम 2009 से लागू था जिसे बाद में पर्यावरण मंत्रालय ने वनाधिकार कानून से अनुपालन के साथ जोड़ दिया था|

पर्यावरण मंत्रालय के 26 फ़रवरी के निर्देश के अनुसार वनाधिकार कानून का अनुपालन जरुरी नहीं है और ये सारी प्रक्रिया जिलाधिकारी द्वारा किया जायेगा| पर्यावरण मंत्रालय का निर्देश अब पूरे देश में लागू होगा| जंगल खाली करने वाले आदेश प्रपत्र में याचिकाकर्ताओं की संख्या देखेंगे तो पता चल जायेगा कि इनके एनजीओ के लिए पैसे कहाँ से आता होगा और ये न्यायिक लड़ाई लड़ने के लिए इनके पास इतने पैसे कहाँ से आते होंगे| आदिवासियों के पास न पैसे हैं न कानूनविद इसलिए मूकदर्शक पंचिंग बैग हैं|  

तमाम रिफाऱिशों में एक, खाखा कमिटी (2014) ने भी जंगल संरक्षण अधिनियम, वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के हवाले से आदिवासी लोगों के जीवन में होने वाले प्रभाव को आगाह किया था कि तमाम किस्म के केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा बनाए कानूनों का दूरगामी परिणाम हो सकता है| कमिटी ने अपने सिफारिश में कहा है कि – केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा लिए गए निर्णय सीधे-सीधे अनुसूचित (5 वीं और 6 ठी अनुसूची) इलाकों में लागु नहीं होनी चाहिए| इन तमाम तरह के निर्णयों में राज्यपाल और जनजाति परामर्श दात्री परिषद् के सहमति से होनी चाहिए    

ज्ञात हो कि 13 फ़रवरी को उच्चतम न्यायालय ने 21 राज्यों के आदिवासी और पारम्परिक वन निवासियों को जंगल के इलाके खाली करने का आदेश दे दिया गया था| इसके तहत काफी अख़बारों के अनुसार लगभग 23 लाख आदिवासी और अन्य पारम्परिक वन निवासियों का जीवन प्रभावित होने की बात कही गयी थी| वहीँ हमने लगभग 60 लाख लोगों के जीवन प्रभावित होने का अनुमान लगाया है|


फोटो : आशीष कोठारी

Ganesh Manjhi

Dr Ganesh Manjhi is a native of Simdega, Jharkhand. He is currently working as Assistant Professor (Economics) in Gargi College, Delhi University. डॉ गणेश मांझी, सिमडेगा, झारखण्ड से हैं. साथ ही अभी गार्गी कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर(अर्थशास्त्र) के रूप में कार्यरत हैं. Email: gmanjhidse@gmail.com

One thought on “सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद, अब सरकार ने वन अधिकार कानून में ग्राम सभा के अधिकारों को छीना

  • March 13, 2019 at 9:07 am
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    This is very sad and foolish decision of court and government..how can tribals be separated from forests , tribals totally depends on forests and it’s resources.. government and courts will not realise the pain of tribals sitting at the centre’s and enjoying every luxury of life..they also should be sent into tribal areas to live like tribals, then they know how hard it is to survive in these areas without forest resources.. It is very true that until government doesn’t get formed leaders makes many fakes and after getting into power comes into political color..

    And yes if it comes to making hydros projects and giving forests to big industries then it’s becomes national interest and government becomes ‘kutta'(mind it I said kutta) of industrialists..then they can’t able to see forests and poor people being survived on forestry..
    Court being suppressed by politics to make wrong decision..

    INDIA IS POOR BECAUSE ITS DESCISION MAKERS ARE FOOLS…
    JAI HIND JAI BHARAT

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