सामाजिक न्याय की जीत: 200 बिंदु रोस्टर के अध्यादेश को कैबिनेट की मंजूरी
फोटो: गणेश माँझी
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गुरुवार 7 मार्च को विश्वविद्यालय के शिक्षकों के लिए आरक्षण पर एक महत्वपूर्ण अध्यादेश जारी करते हुए 13 बिंदु रोस्टर को ख़ारिज कर दिया और 200 बिंदु रोस्टर को मंजूरी दे दी है| प्रेस इनफार्मेशन ब्यूरो, इंडिया ने ट्विटर के माध्यम से इसकी जानकारी दी| उम्मीद है जल्द ही सरकार इस पर बिल लाकर नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू भी करेगी और काफ़ी सालों से पढ़ा रहे तदर्थ शिक्षकों को भी विभाग में ही स्थायी रूप से नियुक्त करेगी|
ज्ञात हो कि, उच्चतम न्यायालय ने मानव संसाधन विकास मत्रालय और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के 13 बिंदु रोस्टर को लेकर किये गए रिव्यु पेटिशन को 27 फरवरी को फिर से खारिज कर दिया था और कहा था कि कॉलेजों, विश्वविद्यालयों में विषयवार/विभागवार ही नियुक्ति होगी| उच्चतम न्यायालय द्वारा यही फैसला 22 जनवरी को आने पर तमाम संगठन और समूह ने इस निर्णय का विरोध किया था और कहा था की जिस त्वरित गति से केंद्र सरकार अगड़ी जाति के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण पर अध्यादेश लायी, फिर राज्य सभा में पारित कर दिया उसी प्रकार 13 बिंदु के ख़िलाफ़ 200 बिंदु रोस्टर पर अध्यादेश लाये|
200 बिंदु रोस्टर के पक्ष में पूरे देश में व्यापक आंदोलन अभी भी चल रहा है और 5 मार्च, 2019 को भी दिल्ली यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन (DUTA) के अगुवाई में मंडी हाउस से जंतर मंतर तक शिक्षकों, छात्रों और विभिन्न संस्थाओं ने 13 बिंदु रोस्टर के खिलाफ मार्च किया| 5 मार्च को पूरा भारत बंद का नारा भी दिया गया जिससे सरकार सकते में रही और मंत्रिमंडल की बैठक जल्द बुलाकर 200 बिंदु रोस्टर पर अध्यादेश लाने की तैयारी करती नजर आयी| अगर सरकार सामाजिक न्याय के पक्ष में खड़ी है तो अंततः एक ही उपाय बचा था और वो है अध्यादेश और फिर संसद में बिल, जिससे की विभिन्न शिक्षण संस्थानों में दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों को समुचित स्थान मिल सकता है|
रोस्टर क्या है?
डिक्शनरी परिभाषा के अनुसार यह एक सूची या योजना है जो किसी संगठन में व्यक्तियों या समूहों के लिए कर्तव्यों के क्रम को दिखाती है| मतलब कौन सा व्यक्ति कौन से क्रम में कार्य करेगा या नहीं करेगा, उसकी सूची| आइये इसे विश्वविद्यालय स्तर पर समझने की कोशिश करते हैं| विश्वविद्यालय/ कॉलेज/ विभाग में कुल उपलब्ध सीटों के वितरण को भारतीय संविधान में निहित प्रतिनिधित्व के प्रावधान को ध्यान में रखते हुए जिस क्रम में रोजगार दिया जाना चाहिए, को ही उस विश्वविद्यालय/कॉलेज/विभाग का रोस्टर कहते हैं| वास्तव में, रोस्टर का निर्माण भारत में रह रहे अलग-अलग समुदाय के लोगों को सांविधानिक रूप से पर्याप्त हिस्सेदारी के आधार पर ही बनाना चाहिए, और समुच्चित हिस्सेदारी मिलनी चाहिए| लेकिन अभी के उच्चतम न्यायालय के फैसले से पर्याप्त साझेदारी की सम्भावना क्षीण दिखाई देती है जिसकी वजह से सामाजिक रूप से पिछड़े लोगों में रोष ब्याप्त है|
विवाद क्या है?
विवाद तब शुरू हुआ जब उच्चतम न्यायालय ने 22 जनवरी 2019 के फैसले (Sri Vivekanand Tiwari and another vs. Union of India में) में कहा की शिक्षकों की बहाली किसी भी महाविद्यालय या विश्वविद्यालय के विभाग को केंद्र मानकर किया जाना है| ठीक यही फैसला इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा 7 अप्रैल 2017 को दिया गया था| दरअसल, 2006 से पहले भी विभागवार शिक्षकों की बहाली की रोस्टर की विधि ही प्रचलित थी शायद यही वजह है की अभी तक विश्वविद्यालयों में अनुसूचित जाति, जनजाति और अतिपिछड़ों की नियुक्ति/प्रतिनिधित्व को इनके जनसँख्या के आधार पर पर्याप्त मौका नहीं दिया गया था| विभागवार शिक्षकों की बहाली को 13 बिंदु रोस्टर कहा गया क्यूंकि इस पध्दति से 14 वां पोस्ट अगर आता है तो अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित होगा|
विभागवार नियुक्ति में पिछड़े वर्गों को, और अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को पर्याप्त मौका न मिलने की वजह से कांग्रेस की नेतृत्व वाली सरकार ने 2006 में कार्मिक लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय, कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (Department of Personnel and Training – DOPT), भारत सरकार के माध्यम से विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को चिठ्ठी लिखकर आरक्षण सम्बन्धी त्रुटियों को दूर करने के लिए कहा था| फलतः, प्रो. काले कमिटी ने एक नया रोस्टर बनाया जिसे 200 बिंदु रोस्टर कहते हैं| तब से 200 बिंदु रोस्टर जारी था लेकिन 7 अप्रैल 2017 के ईलाहाबाद उच्च न्यायलय ने फिर से इसके खिलाफ फैसला सुना दिया और 13 बिंदु रोस्टर का उदय हुआ, जिसमे की विभाग (विषय) को केंद्र बनाया गया| इस फैसले के तहत पहले तीन पोस्ट अनारक्षित रहेंगे, फिर चौथा पोस्ट पिछड़ा वर्ग को जायेगा, पांचवां और छठा फिर अनारक्षित, सातवां पोस्ट अनुसूचित जनजाति को, आठवां पोस्ट पिछड़ा वर्ग को, नवां, दसवां और ग्यारहवाँ पोस्ट अनारक्षित, बारहवाँ पोस्ट पिछड़ा वर्ग को, तेरहवाँ पोस्ट अनारक्षित और चौदहवाँ पोस्ट अगर आता है तो अनुसूचित जनजाति को जायेगा| पन्दरहवाँ पोस्ट से यही क्रम फिर से दुहराया जायेगा| इसी प्रकार अलग तरीके से सक्षम (differently able) लोगों की स्थिति और भी बुरी हो जाएगी|
वर्तमान में रोस्टर को लेकर पूरे देश में घमासान मचा हुआ है जो की बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से चल कर इलाहबाद उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय से होते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय और अन्य केंद्रीय विश्वविद्यालयों में पहुँचा है| जिस त्वरित गति से विभागों में रिक्त जगहों की भर्ती के लिए विज्ञापन आ रहे थे, तो लग रहा था पूरे शिक्षण संस्थानों में 13 बिंदु रोस्टर के बहाने तथाकथित अगड़े जातियों का कब्ज़ा हो जायेगा| अध्यादेश लाने के पीछे राजनीतिक मायने क्या होंगे सरकार ने जरूर जाँच परख किया होगा| ज्ञात हो की मानव संसाधन विकास मंत्रालय को, 200 बिंदु बिल पर काम करने का आदेश पहले ही दे दिया गया था और मत्रिमंडल की अंतिम बैठक में 200 बिंदु रोस्टर पर अध्यादेश का निर्णय 6 मार्च को लिए जाने की सम्भावना थी जोकि अंततः 7 मार्च को मंत्रिमंडल ने मंजूरी भी दे दी है| इससे सम्भावना जताई जा रही है कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों में जो 5000 पद रिक्त हैं उनमे न्यायपूर्ण और गुणवत्तापूर्ण शिक्षकों की नियुक्ति का मार्ग प्रशस्त होगा|
देश के तमाम संगठन इसे सामाजिक न्याय के दृष्टिकोण से देख रहा है और स्वागत भी कर रहा है| उम्मीद जताई जा रही है कि उच्चतम न्यायलय द्वारा 13 फ़रवरी को दिए गए निर्णय के खिलाफ भी सरकार अध्यादेश लाएगी, जिसमे आदिवासी और अन्य पारम्परिक वन निवासियों को जंगल खाली करने के आदेश दिए गए थे (न्यायालय ने फिलहाल समय देते हुए इस आदेश पर रोक लगा दिया है)| आदिवासी रिसर्जेंस के मुताबिक उच्चतम न्यायालय के आदेश से लगभग 60 लाख आदिवासियों का जीवन प्रभावित होगा|
ध्यातब्य हो कि संविधान के अनुच्छेद 16 (4) में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़े वर्ग के लिए पर्याप्त प्रतिनिधित्व और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण का प्रावधान है, लेकिन अबतक भी शिक्षण संस्थानों में खाली सीट नहीं भरे गए हैं और नहीं भरे जाने के लिए तमाम किस्म के बहाने और तिकड़म लगाए जाते हैं, जैसे “नॉट फाउंड सूटेबल” या जानबूझकर ऐसे सीटों का विज्ञापन निकालना जिसमे आरक्षित श्रेणी के लोग योग्य ही न हों|