गुंडाधुर धुरवा की प्रतिमा अनावरण में धुरवा समाज व सर्व आदिवासी समुदाय की उपेक्षा

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गुंडा धुर नेतानार ग्राम, बस्तर के एक वीर आदिवासी क्रन्तिकारी थे जिन्होंने 1910 के भूमकाल आंदोलन में एक अहम् भूमिका निभाई। गुंडा धुर के नेतृत्व में आदिवासियों ने अंग्रेजो के खिलाफ एक मिसाल कायम करने वाला विद्रोह किया। 1910 में अंग्रेजी शासन ने कांगेर जंगल के दो तिहाई हिस्से को आरक्षित वन घोषित करने का प्रस्ताव रखा और साथ ही पोडू (shifting cultivation) खेती, जंगल में शिकार तथा वन उत्पादों को लेने पर पाबन्दी लगायी। इस योजना से क्षेत्र के आदिवासियों की जीविका और जीवन प्रभावित होते, साथ ही उन्हें विस्थापित किया जाता।

इसके साथ ही उसी समय में बस्तर का यह क्षेत्र भयानक अकाल से प्रभावित हुआ, जिसने विद्रोह को आवश्यक बना दिया। इस कारण, गुंडा धुर के नेतृत्व वाले इस आंदोलन ने ज़मींदारो और ब्रिटिश शासन के शोषण के खिलाफ भी विरोध छेड़ा। ब्रिटिश शासन को इस आंदोलन को काबू करने में महीनो लगे,  लेकिन गुंडा धुर कभी भी उनके हाथ नहीं आये। इस आंदोलन के फलस्वरूप अरक्षित वन का प्रस्ताव उसी समय रद्द कर दिया गया और बाद में उसके प्रस्तावित क्षेत्र को घटा कर आधा कर दिया गया। गुंडा धुर की बहादुरी की कहानियां आज भी कहानियों और लोक गीतों में मिलती है।

बस्तर के इस वीर क्रांतिकारी बागा धुरवा को अंग्रेजों ने ही गुंडाधुर की उपाधि दी थी। दरअसल शहीद गुंडाधुर के विद्रोह करने के चलते ये नाम अंग्रेजों ने ही उन्हें दिया था। इतिहास के पन्नों में दर्ज शहीद गुंडाधुर का व्यक्तित्व और कृतित्व आज भी लोगों के मन में जिंदा है, लेकिन आज भी उनके चाहने वाले ये मांग कर रहे हैं कि शहीद गुंडाधुर को शहीद का दर्जा मिले। बस्तर के आदिवासी हर साल क्रांतिकारी गुंण्डाधुर को याद कर उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं।

लेकिन इसके बावजूद शहीद गुंडाधुर को जो दर्जा मिलना चाहिए, उसकी दरकार आज भी है। कोशिश यही होनी चाहिए कि ऐसे वीर क्रांतिकारियों के बलिदान को अपनी पहचान सहज ही मिले और उसे पाने के लिए संघर्ष न करना पड़े।

हाल ही की एक घटना में देखने मिला है कि जिला प्रशासन ने गुंडाधुर की प्रतिमा के अनावरण में धुरवा समाज व सर्व आदिवासी समुदाय की उपेक्षा की। जिला प्रशासन बस्तर के द्वारा जननायक वीर शहीद गुण्डाधुर धुरवा की आदमकद प्रतिमा, स्थान – ग्राम चायकुर, नेतानार में लोकार्पण कार्यक्रम दिनाँक 25 जनवरी, 2018 को आयोजित किया गया, मगर इस कार्यक्रम में गुण्डाधुर धुरवा के समुदाय के साथ ही साथ सर्व आदिवासी समाज के सामाजिक मांझी मुखिया, प्रमुख पदाधिकारियों तक को जिला प्रशासन द्वारा आमंत्रित नहीं किया गया।

खबर है कि कुछ प्रसाशनिक अफसर दिनाँक 24 जनवरी को शाम 5-6 बजे कुछ सियानों को हड़बड़ी में फोन से सम्पर्क साध कर समुदाय को शामिल करने हेतु निवेदन कर रहे थे। जबकि धुरवा समाज के पदाधिकारी द्वारा 22 फरवरी को प्रतिमा अनावरण के संबंध में जिला प्रशासन व जगदलपुर विधायक को अवगत करा दिया गया था। लेकिन कोई सकारात्मक जवाब नहीं दिया गया फिर कार्यक्रम के 12 घण्टे पूर्व आनन फानन में सूचना देकर समुदाय को तिरस्कार किया गया।

विदित हो कि धुरवा समुदाय द्वारा बुमकाल दिवस कई ऐतिहासिक स्थलों में आयोजित करते हुए 22 फरवरी को चायकुर में समापन किया जाता है इसलिए समाज द्वारा 22 फरवरी को लोकार्पण करने की बात से अवगत करवाया गया था। परंतु जिला प्रशासन द्वारा पूरे आदिवासी समुदाय की जनभावनाओं के विपरीत कदम उठाते हुए समुदाय को उपेक्षित कर रहा है। ऐसे ही पिछले साल पुलिस प्रशासन द्वारा गुंडाधुर की अशोभनीय असन्तुलित प्रतिमा का आधा निर्माण कर जनप्रतिनिधियों से अनावरण करने पर आमादा था परंतु इस पर समाज ने घोर विरोध दर्ज करा कर जनभावनाओं से अवगत कराया गया और उसे रुकवाया था परंतु आज भी फिर वही उपेक्षा व तिरस्कार समुदाय के  साथ हो रहा है । जिसे हम बस्तर के जननायक गुंडाधुर धुरवा के अप्रत्यक्ष अपमान के रूप मे कह सकते है। आदिवासी समुदाय ने यह स्पष्ट बात सामने रखी है कि अब उन्हें अपमान उपेक्षा नहीं सम्मान चाहिए।

Mangal Kunjam

Mangal is a journalist from Koitur community and a native of Kirandul village, Dantewada. He writes on issues concerning Adivasis in Southern Chhattisgarh.

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