झारखंड की सुमराई टेटे बनी ध्यानचंद पुरस्कार पाने वाली पहली महिला हॉकी खिलाडी
- झारखंड की सुमराई टेटे बनी ध्यानचंद पुरस्कार पाने वाली पहली महिला हॉकी खिलाडी - September 4, 2017
- Sumrai Tete becomes India’s first female hockey player to win Dhyan Chand Award - September 3, 2017
30 अगस्त, 2017
राष्ट्रिय खेल दिवस के अवसर पर 29 अगस्त को, नई दिल्ली के राष्ट्रपति भवन में हुए एक समारोह में भारत की पूर्व महिला हॉकी कप्तान सुमराई टेटे को भारत के माननीय राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद ने ध्यानचंद लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड 2017 से सम्मानित किया | ध्यानचंद पुरस्कार प्राप्त करने के लिए सुमराई टेटे देश की पहली महिला हॉकी खिलाडी हैं | यह पुरस्कार उन खिलाडियों को सम्मानित करने के लिए दिया जाता है जिन्होंने अपने प्रदर्शन से खेल में योगदान दिया है और सक्रिय खेल के करियर से रिटायर होने के बाद भी खेल को बढ़ावा देने में योगदान जारी रखा है | दिग्गज भारतीय हॉकी खिलाडी ध्यानचंद के नाम पर इस पुरस्कार में 5 लाख रूपए का नकद पुरस्कार, एक प्रतिमा, औपचारिक पोशाक और सम्मान की पुस्तक है | झारखंड के सिमडेगा जिले के एक और वरिष्ट आदिवासी हॉकी खिलाडी और मास्को ओलिंपिक (1980) के स्वर्ण पदक विजेता श्री सिल्वानुस डुंगडुंग को भी 2016 में ध्यानचंद पुरस्कार से सम्मानित किया जा चूका है |
संक्षिप्त जीवन परिचय
15 नवम्बर, 1979 में सुमराई टेटे का जन्म सिमडेगा के कशीरा मेरोमटोली गाँव में एक खड़िया आदिवासी परिवार में हुवा था | उसने बहुत कम उम्र से ही हॉकी खेलना शुरू किय था, लेकिन कभी यह नहीं सोचा था की एक दिन वह भारतीय राष्ट्रीय टीम में शामिल होगी | वह कहती है – ” बचपन से ही हॉकी में मेरी रूचि थी | हमारे गाँव में हॉकी मनोरंजन के साधन के रूप में खेला जाता था | मेरे पिताजी, दादाजी, बहने सभी हॉकी खेलते थे |”
सुमराई के माता-पिता किसान थे | वे अपनी बेटियों को स्कूल भेजने के लिए कड़ी मेहनत करते थे | वह कहती हैं – ” हमारे परिवार की सामाजि-आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी, हम लोग बहुत गरीब थे, हमारे माता-पिता ने बहुत संघर्ष किया, लेकिन हमें कभी यह महसूस होने नहीं दिया | हमारी शिक्षा के लिए दोनों कड़ी मेहनत करते थे |”
सुमराई ने सिमडेगा-समसेरा के आवासीय विद्यालय संत टेरेसा बालिका माध्यमिक विद्यालय में अपनी पढाई की | वह स्कूल में भी हॉकी खेलती रही | 1990 में वहां उसे पहली सफलता मिली, जब बालिका क्रीड़ा विद्यालय, बरियातु केंद्र के लिए उसका चयन हो गया और वह हॉकी प्रशिक्षण के साथ-साथ सरकारी महिला उच्च विद्यालय, रांची में पढने भी लगी | धीरे-धीरे अपने कठिन परिश्रम से उसने राष्ट्रीय कैंप में अपनी जगह बनाई और अपने क्षमता दिखाते हुए वह जूनियर राष्ट्रीय टीम के लिए चयनित हो गयी और 1995 में दक्षिण कोरिया में आयोजित टूर्नामेंट में अपनी पहली अंतर्राष्ट्रीय मैच खेली | अपना अनुभव बताते हुए सुमराई कहती हैं -“मैं बहुत छोटी थी, लेकिन संकोच बिलकुल नहीं था | वह मेरा पहला अंतर्राष्ट्रीय टूर्नामेंट था, इसलिए मैं काफी उत्साहित थी | मेरा ध्यान किसी और चीज में नहीं केवल खेल में था |”
दसवी और बारहवी की पढाई पूरी करते ही, 1997 में उसने भारतीय रेलवे में नौकरी करनी शुरू कर दी, साथ ही साथ, उसने गोस्सनर कॉलेज, रांची से अपने स्नातक की पढाई भी जारी रखी| 1995-2006 के बीच वह राष्ट्रीय टीम का अभिन्न अंग थी, उसने कप्तान और उप-कप्तान के रूप में कई बार टीम का नेतृत्व किया | 2002 के मेनचेस्टर राष्ट्रमंडल खेल में इंग्लैंड को (3-2) से हराकर स्वर्ण पदक जीतने के बाद अपनी पहली ऐतिहासिक जीत दर्ज कर टीम ने 2003 में एफ्रो-एशियाई खेल और 2004 में एशिया कप जीता | 2011-2014 के बीच वह राष्ट्रीय हॉकी टीम की कोच रही और अभी भारतीय रेलवे क्लब में प्रशिक्षण देती हैं | 38 वर्षीय सुमराई अभी दक्षिण पूर्व रेलवे में कार्यालय अधीक्षक के पद पर कार्यरत हैं, राष्ट्रीय टीम में 11 वर्षो के करियर के दौरान सुमराई ने अपने उत्कृष्ट प्रदर्शन से अपनी क्षमता साबित किया, 30 से अधिक अंतर्राष्ट्रीय टूर्नामेंट में उसने लगभग 200 अंतर्राष्ट्रीय मैच में भाग लिया है |
हॉकी इंडिया में छोटानागपुर के आदवासियों की भूमिका
भारतीय खेलकूद के गौरवपूर्ण सफ़र के दौरान छोटानागपुर के आदिवासियों की भारतीय हॉकी में अहम् भूमिका रही है | शुरुवात से ही श्री जयपाल सिंह मुंडा से जिसने 1928 से एम्स्टर्डम ओलिंपिक में पहली भारतीय राष्ट्रीय हॉकी टीम का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया था और देश के लिए पहला स्वर्ण पदक जीता था, असल में वह एशिया का पहला स्वर्ण पदक था | उनकी विरासत को आगे ले जाने वाले कई आदिवासी खिलाड़ी चैंपियन बने |
छोटानागपुर की आदिवासी लड़कियों ने 1990 के दशक से राष्ट्रीय महिला हॉकी टीम में अपनी उपस्थिति दर्ज करायी है | तब से लगभग 70 लड़कियां हॉकी इंडिया में खेल चुकी है और देश के लिए ख्याति अर्जति की है | प्राकर्तिक रूप से प्रतिभाशाली ये अधिकतर लड़के और लड़कियाँ गरीब परिवार और ग्रामीण इलाके से आती हैं | केवल खेल सुविधाएं ही नहीं, बल्कि आधारभूत सुविधाएं जैसे पीने योग्य पानी, बिजली, सड़क, यातायात प्रणाली, समुचित शिक्षा और स्वास्थ्य केंद्र आम नहीं हैं | कोई भी इन विषम परिस्थिति को देखकर सोच में पद सकता है की आखिर इन लोगो की सफलता का राज क्या है | जवाब यह है की हॉकी इनके खून में दौड़ती है!
( एल्मा ग्रेस बरला एक स्वतंत्र लेखिका हैं और “आदिवासी वीरांगनाएं: भारत की वीर आदिवासी महिलाओं की सच्ची गाथा ” पुस्तक की लेखिका हैं )