जारवा औरतें
Image: Two young Jarawa girls, their heads and necks encircled by flower decorations. (Getty Images file photo)
जारवा औरतें
क्या कभी मां-बहने-औरतें-लडकियां
देखी नहीं तुमने ?
फिर क्यों देख रहे हो?
आॅंखे गडाएं हमारे नग्न बदन पर
क्यों धसक रहीं है तुम्हारी
वासनामयी नजरे – विषैले काटों से भी विषैली
क्यों लग रहीं, हम तूम्हे विश्व का विचित्र प्राणी ?
अंडमान निकोबार में रहने वाले आदिवासी,
क्या मानव मनुष्य नहीं ?
जो निसर्ग की गोद में नैसर्गिक जीवन जीते आये
निसर्ग को पढ़ने का जो ज्ञान है उन्हें
निसर्ग चक्र के साथ जीना मरना जानते हैं वो।
आप क्यों भुल गये हो
वे मनुष्य ही हैं!
वो करते हैं विडंबना टिप्पनियां
उंचे कपड़े पहन कर अंदर से क्यों नंगा पन दिखाते हो ?
क्यों ऐसी सड़ी सोच पाल के बैठे हो ?
क्यों दिमाग की बत्ती बुझाके रखते हो ?
जारवा है जारवा – नंगे – भुखे
कंगाल – बुद्धु – अबुझ – जारवा
काले कलुटे – विद्रुप – नंगे…
खाना-पीना लिखना-पढ़ना नहीं
अरे अंदमान निकोबार में आप रहकर देखो
दो-चार-पांच साल
फिर कहना… क्या होता है जीना ?
किसको कहते है पशु..? अबुझ…?
कहते हैं, ना दुनियां का ज्ञान ना पहचान
कैसे जीते है…. अनपढ़ गवांर….जानवर जैसे
तूम्हें देखकर – जारवा औरतें
भागती थी – दुधमुहे बच्चों को छाती से लगा के
बंदरिया जैसे दरी पहाडों में
और आप फेंकते थे उनके उपर
ब्रेड, पाव के तुकडे….
जैसे जानवरों की ओर फेंके जाते हैं
या कुत्ते, सुअर की ओर फेंकते हैं
तुम्हारे कैमरे गड़े थे
उनकी देह पर
खचाक खचाक खिंची जाती थी तस्वीरें
लिखे जाते थे ब्लाॅग आॅनलाईन
छापी जाती थी कव्हर स्टोरी
टीवी, पेपर, इंटरनेट पर
बड़ी बड़ी खबरे देकर
कमा रहे थे करोडों रूपये
नंगे बदन की, मां बहनों की तस्वीरें
जैसी स्पर्धा लगी थी जाहिरात बाजी की
करोडों का धंदा, बाजार, व्यापार बना दिया
दलालों ने, सभ्य कहने वाले लोगों ने
जारवा औरतों की तस्वीरें
जब कैमरे मे बंद की जाती थी
तब वो चिल्लाती थी, डर गई थी, घबरा गई थी
वो भागती – भागती – भागती थी……
कैमरा दौडता – दौडता – दौडता था उनके शरीर पर
कब्जा करके गड़ गया था
वो डर के मारे बेहोष होकर गिरती थी
होश आने के बाद और भागती थी
आप तो पेटभर हंसते थे
तस्वीरे लेते मिडिया ने भी तो छोडा नहीं उन्हें
कैद करके रखी थी
वो कहती थी
आंधी-तुफान से मेघगर्जना
समुंदर से निसर्ग से हम नहीं डरते
क्यों की उनकी ऑंखें हमारे
नंगे बदन पर कभी नहीं गडी रहती
ये मानव होकर
हमें नहीं समझ सके
वो नहीं कहते हमें उनके जैसे मनुष्य
तो कब कहेंगे – जारवा औरते भी
हमारी माँ-बहने हैं
क्या यही है आपकी सभ्यता ?
achchi kavita .