जंगल की लड़ाई

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जंगल की लड़ाई

जंगल में अब

लड़ाई चल रही है
सखुआ के पेड़ में
मनुष्य का खून लगा है
और जमीन पर तो –
मनुष्य का सर लुढक रहा है।

जंगल को गुलाम
करने की लड़ाई
जमीन के अंदर की दौलत
लूटने की लड़ाई
अब जोर पकड़ रही है।

उस ओर से कमांडो
इस ओर से कॉमरेड
उसके बीच
सखुआ के आड़ में
आदिवासी रो रहे है।

उस ओर से कॉमंडो के
हिप-हिप हुर्रे
इस ओर से कॉमरेडों के
हुल गीत से
जंगल भर गया है –
और
आदिवासियों के
रोने की आवाज़
लड़ाई की शोर से
दब गयी है।


Featured image courtesy: Sabrang

 

Chandramohan Kisku

दक्षिन पूर्व रेलवे में कार्यरत चंद्रमोहन किस्कु की संताली भाषा में एक कविता पुस्तक "मुलुज लांदा" साहित्य अकादेमी दिल्ली से प्रकाशित हो चुकी है। वे संताली से हिंदी, हिंदी से संताली, बांग्ला से संताली में परस्पर अनुवाद करते हैं और अखिल भारतीय संताली लेखक संघ के आजीवन सदस्य हैं।

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