यहीं-कहीं इसी शहर में
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यहीं-कहीं इसी शहर में
गायब होती गौरैया ने देखा
शहर के अंदर
कटकर गिरा कोई जंगल
जिसके निशानों के पास
बैठकर उसकी स्मृति के साथ
यह शहर अपनी शाम गुजारता है।
इसी शहर के अंदर
गिरा एक पेड़ समय से पहले
उसकी ‘धड़ाम’ की आवाज से
जरा सा हिला यह शहर, अपनी नींद में।
इसके अंदर दम तोड़ रहीं हैं नदियां
और अपनी स्मृतियों में
वह रख लेता है उन्हें जिंदा
ताकि अपने बच्चों की कल्पनाओं में
खींच सके कोई
जीवित रेखाचित्र किसी नदी की।
गायब होती गौरैया ने देखा
शहर की भीड़ के हाथों
तितलियों को मरते हुए
और बच्चों ने देखा
मैदानों को श्मशानों में बदलते हुए।
बच्चों का विश्वास है
जबतक बचा है पृथ्वी पर एक भी फूल
तितलियां मर नहीं सकतीं
वे लौट सकती हैं
दुनिया के किसी भी कोने से
इसलिए हाथों में फूल लेकर
बच्चे ढूंढ रहे हैं तितलियों की कब्र
यहीं-कहीं इसी शहर में…..।।
bahut achchi kavita badhai jacintha ji ko