यहीं-कहीं इसी शहर में

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यहीं-कहीं इसी शहर में

 

गायब होती गौरैया ने देखा

शहर के अंदर

कटकर गिरा कोई जंगल

जिसके निशानों के पास

बैठकर उसकी स्मृति के साथ

यह शहर अपनी शाम गुजारता है।

 

इसी शहर के अंदर

गिरा एक पेड़ समय से पहले

उसकी ‘धड़ाम’ की आवाज से

जरा सा हिला यह शहर, अपनी नींद में।

 

इसके अंदर दम तोड़ रहीं हैं नदियां

और अपनी स्मृतियों में

वह रख लेता है उन्हें जिंदा

ताकि अपने बच्चों की कल्पनाओं में

खींच सके कोई

जीवित रेखाचित्र किसी नदी की।

 

गायब होती गौरैया ने देखा

शहर की भीड़ के हाथों

तितलियों को मरते हुए

और बच्चों ने देखा

मैदानों को श्मशानों में बदलते हुए।

 

बच्चों का विश्वास है

जबतक बचा है पृथ्वी पर एक भी फूल

तितलियां मर नहीं सकतीं

वे लौट सकती हैं

दुनिया के किसी भी कोने से

इसलिए हाथों में फूल लेकर

बच्चे ढूंढ रहे हैं तितलियों की कब्र

यहीं-कहीं इसी शहर में…..।।


 

Jacinta Kerketta

Jacinta is a freelancer journalist, poet from Ranchi, Jharkhand. She belongs to Kurukh/Oraon community. Her poem collection titled "Angor" was published in 2016 by Adivaani Publications. Her second poetry collection is "Land of the Roots" published by Bhartiya Jnanpith, New Delhi in 2018. रांची, झारखंड से, जसिंता एक स्वतंत्र पत्रकार और कवि हैं। वह कुरुख / उरांव समुदाय से हैं। "अंगोर" शीर्षक से इनकी कविता संग्रह 2016 में आदिवाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित हुई थी। 2018 में प्रकाशित इनकी दूसरी कविता संग्रह "जड़ों की जमीन" है जो भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित की गई है।

One thought on “यहीं-कहीं इसी शहर में

  • December 19, 2016 at 6:23 pm
    Permalink

    bahut achchi kavita badhai jacintha ji ko

    Reply

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