आर्य आक्रमण सिद्धांत: काल्पनिकता, मिथक एवं वास्तविकता (भाग एक)
- Hegemony of the “Caste Echelon”, Brahmanical Hindutva and Reservation Politics - February 29, 2016
- आर्य आक्रमण सिद्धांत: काल्पनिकता, मिथक एवं वास्तविकता (भाग एक) - February 13, 2016
- Identity in the 21st Century II – The Sciences - February 9, 2016
देर-सवेर एक दो पोस्ट आते रहते हैं, कभी-कभार कुछ तथ्य भी प्रकाशित होते रहते हैं और अधिकतर पुराने तथ्यों की विवेचना होती रहती है। अतएव नवीनतम, सामायिक एवं रूपवादी जानकारियों की आवश्यकता दिखाई पड़ी।
शुरुआत करने से पहले अपने मनश्चित्र में टैग किया हुआ मानचित्र ध्यान से बिठा लीजिये – क्यूंकि इसकी जरुरत पड़ेगी।
सबसे पहले चर्चा करते हैं शब्द “हिन्दु” (Hindu) के बारे में; क्यूंकि इसी शब्द के सन्दर्भ में इस देश का बहुल एक विशिष्ट पहचान की बात करता है। इसी शब्द के प्रसंग में देश के पहचान की बातें होती हैं। और इसी शब्द का प्रयोग भेद-भाव और षड्यंत्र के लिए होता रहा है, हो रहा है।
सबसे हास्यजनक परिस्थिति इस तथ्य से उत्पन्न होती है कि इस शब्द के लिए लोग एक दूसरे के गले पर खड़े हो जाते हैं और यह शब्द इस बहुल समाज का ही नहीं है। यह शब्द इनके भाषा का भी नहीं है। इस शब्द का अर्थ भी इनके सबसे “उत्कृष्ट” भाषा, संस्कृत में नहीं है।
“हिन्दु” शब्द का इतिहास थोड़ा रोचक है –
इस शब्द का सबसे पहला प्रयोग मिलता है आजसे 2530 वर्ष पूर्व फारस (आज का ईरान) के सम्राट “दारयवा’उस” (Eng. Darius I) के शासन काल में जब उसने सिंधु नदी घाटी तक अपना साम्राज्य फैला लिया था। उसके शासन काल में राजभाषा “पौराणिक फ़ारसी” और राजधर्म “जरथुस्त्र मत” था (यह धर्म आज भारत के पारसी/ईरानी समुदाय के लोग जिन्दा रखे हुए हैं)।
वह सिंधु घाटी और उसके पार के वाशिंदों को “हिन्दु” कहते थे। इसका कारण था पौराणिक फ़ारसी में दन्त स का लोप उच्चारण। पौराणिक फ़ारसी में सारे दन्त स युक्त शब्द “ह” से बदल चुके थे। (उदहारण – सप्ताह-हप्ता)। दारयवा’उस के अधीन यूनानी (Greek) स्वाशयुक्त “ह” का उच्चारण नहीं करते थे – तो हिन्दू – इण्डोस (Indos) बन गया। लैटिन में यह इण्डोस फिर इंडस (Indus) उच्चारित होने लगा – अंग्रजी इंडिया (India) इसी शब्द से आता है।
सोलहवीं शताब्दी में “समकालीन फ़ारसी” बोलने वाली मुस्लिम मुग़ल सल्तनत ने सिंधु घाटी साम्राज्य को कहा “हिंदुस्तान” (Hindustan)। सत्रहवीं शताब्दी में अंग्रेज भी “हिन्दू” (Hindoo) इस शब्द के प्रयोग करने लगे; परन्तु इस शब्द और इतिहास की चर्चा जग-जाहिर है।
परन्तु सबसे रोचक तथ्य है “हिन्दू” शब्द का प्रयोग सशक्तिकरण के रूप में – उन्नीसवीं शताब्दी में अंग्रेजों के विरुद्ध विरोध करने वाले खुद को हिन्दू कहने लगे और 1923 में सावरकर ने उपनाम के जरिये और 1938 में स्वलिखित; एक नए शब्द “हिंदुत्व” (Hindutva) को जन्म दिया अपने लेख “हिंदुत्व – एक हिन्दू कौन है?” (Hindutva – Who is a Hindu?) में। इस पर कुछ अधिक बोलने की आवश्यकता नहीं क्यूंकि कई लोग इसका इतिहास जानते हैं। (A specific doctrine)
पर यह इस चर्चा का विषय नहीं है। अभी भी केंद्र-बिंदु उसी विषय पर टिका है जिससे लेख की शुरुआत हुई – आर्य आक्रमण सिद्धांत।
“यह एक विवादित सिद्धांत है” – ऐसा कहना गलत नहीं होगा। आज कट्टरपंथी और रूढ़िवादी इसका खुले तौर पर बहिष्कार करते हैं। उदारवादी और वामपंथी चुप-चाप रहते हैं। और हम आदिवासी इसके आधार पर भेद-भाव के इतिहास का मातम मनाते हैं। सब अपने अपने स्थान पर स्वयं को सही और दूसरे को मिथ्य साबित करने को तैयार रहते हैं।
और हाल ही के वर्षों में (2015 तक) नए तथ्य, पुरातात्विक खोजों और भाषाविज्ञान में नवपरिवर्तन के मद्देनज़र बहुत जरुरी बातें इस देश, खासकर हम आदिवासियों की पहुँच से दूर किया भी जा रहा है और हो भी रहा है।
यह एक प्रमाणित तथ्य है की “आर्य आक्रमण सिद्धांत” मूल रूप में अंग्रेजों के प्रयोजन के द्वारा और जर्मनी में आर्यन नाज़ी विचारधारा से प्रभावित जर्मन भाषाविदों के सुझाव के बल पर प्रस्तुत किया गया था (हालांकि यह मैक्स मुलर के समय से ही चल रहा था)। और बहती हुए धारा में हम मूलनिवासियों के “मौखिक” इतिहास का दुरूपयोग किया गया। देश भर के आदिवासियों के मौखिक इतिहास में बाहरी बर्बरों के आक्रमण और आतंक की स्मृति को “एक संगठित आक्रमण” की संज्ञा देकर एक सिद्धांत बना। और इसका दुष्प्रभाव अब जाहिर हो रहा है।
“आर्य आक्रमण सिद्धांत” अब कालग्रसित और अप्रचलित चुका है। इतिहास, नृविज्ञान, भाषाविज्ञान और पुरातत्व विज्ञान इस सिद्धांत के विरुद्ध प्रमाण देते हैं। विश्व का कोई भी वैज्ञानिक अब इसका समर्थन नहीं करता – और कोई करता भी है तो वह अपवाद है। कट्टरपंथी और रूढ़िवादी इसका खूब जोर-शोर से प्रचार करते हैं। आखिर उनका दावा प्रमाणित जो हो गया है।
इतना कहने पर ही पाठक के जेहन के बिजली कौंध रही होगी कि लेखक आदिवासियों के ही विरुद्ध तथ्य क्यों प्रस्तुत करने की कोशिश कर रहा है?
लेख अभी खत्म नहीं हुआ है।
“आर्य आक्रमण सिद्धांत” अब कालग्रसित और अप्रचलित है और कट्टरपंथी अब इसे “मिथ्य तथ्य” और अंग्रेजों के द्वारा किया हुआ षड्यंत्र मानते हुए “भारत” को ही हिन्दुओं का जन्मस्थान और संस्कृत को भाषाओँ की जननी – प्रचार करते हैं। और इसी में इनके संकुचित ज्ञान और छल-कपट की राजनीति का अभिप्राय साफ़ जाहिर हो जाता है। निश्चय ही सिद्धांत कमजोर है और आने वाले वर्षों में इसका लोप हो जायेगा – इसी के साथ हमारे दावों पर भी प्रश्न-चिन्ह उठेगा और ये समंतवर्ग हमारे विरोध को हंसी में उड़ाने की कोशिश करेंगे। यह नहीं होना है – नयी जानकारियां आदिवासी समाज के एक एक सदस्य तक फैलना जरुरी है।
“आर्य देशान्तरण/प्रव्रजन सिद्धांत” (Aryan Migration Theory) नविन और मान्य सिद्धांत है। कट्टरपंथी और रूढ़िवादी पाखंडी इसके बारे में नहीं बताते हैं – क्यूंकि खतरा उनके लिए अभी भी है।
यह सिद्धांत बताता है की “आर्य” बाहर से ही आये हैं, एकजुट होकर, घोड़े पर सवार आक्रामक तौर पर एक ही बार में नहीं अपितु छोटे-छोटे टुकड़ों और घुम्मकड़ समुदाय (Pastoral Nomads) के रूप में।
हड़प्पा और मोहनजोदड़ो, मूलवासियों के ही नगर हैं जिन्हे तीन-बार खाली किया गया (पहला परित्याग पूर्ण और अचानक समझा जाता है – दूसरा परित्याग समकालीन है और तीसरा परित्याग मौसम के बदलने पर हुआ [वर्षा कम और नदी का सुखना])
और दो बार आर्यों द्वारा फिर से बसाया गया (वैसे ही जैसा अभी झारखण्ड, छत्तीसगढ़ और पूर्वोत्तर राज्यों में हो रहा है – आर्य आकर बसते जा रहे हैं, बिना रोक-टोक और हम मूक दर्शक बने हुए हैं – याद रखिये, इतिहास में एक बार हो चुका है) [‘इतिहास स्वयं को दोहराता है’]
आर्यों के तीन भिन्न समुदायों का प्रवेश भारत में हुआ है – १. इंडो-आर्यन “अ” और “ब” (Indo-Aryan A & B, generalized; विस्तार से अगले अंक में) २. इंडो-ईरानियन (Indo-Iranian)
समुदाय एक अ और ब मध्य एशिया (उज़्बेकिस्तान) के मैदानों से दक्षिण की ओर आये – समुदाय ‘अ’ ईरान अर्थात सिंधु घाटी पूर्व और समुदाय ‘ब’ सिंधु घाटी पश्चिम की ओर समुदाय दो कास्पियन सागर के दक्षिण से पूर्व के ओर और फिर सिंधु घाटी की और ऋग-वेद (Rig Veda) 2-7 और अथर्व-वेद (Atharva Veda) और महाभारत के कौरव, समुदाय एक के इतिहास की कच्ची चिट्ठी हैं और महाभारत के पांडवों का पक्षपात समुदाय दो का हस्तक्षेप है। (इन तथ्यों पर विस्तार से अगले अंक में)
ऋग-वेद वैदिक धर्म अर्थात “ब्राह्मणो” के धर्म का कच्चा चिटठा है और अथर्व-वेद “लोकप्रिय” धर्म का (जो इस बात का इतिहास अपने आप जाहिर करता है की लोकप्रिय धर्म मूलवासियों का धर्म था जिसे इन आर्यों ने “हाईजैक” (Hijack) कर अपना बना लिया – आज जिसे दुनिया हिन्दू-धर्म समझती है और ये पाखंड सवर्णी इसे “सनातन धर्म” कह कर इसकी महानता बनाने की कोशिश करते हैं।
…..अगले अंक में जारी!